________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीः। हरीतक्यादिनिघंटे
अथ वारिवर्गः।
तत्र पानीयनामानि गुणाश्च. पानीयं सलिलं नीरं कीलालं जलमम्बु च । आपो वार्वारिकं तोयं पयः पाथस्तथोदकम् ॥ १॥ जीवनं वनमम्भोऽर्णोऽमृतं घनरसोऽपि च । पानीयं श्रमनाशनं क्कमहरं मूर्छापिपासापहं तन्द्राछर्दिविबन्धहबलकरं निद्राहरं तर्पणम् । हृद्यं गुप्तरसं ह्यजीर्णशमकं नित्यं हितं शीतलं लघ्वच्छं रसकारणं तु निगते पीपूषवजीवनम् ॥२॥ पानीयं मुनिभिः प्रोक्तं दिव्यं भौममिति विधा। दिव्यं चतुर्विधं प्रेक्तं धाराजं करकाभवम् ॥३॥
तौषारं च तथा हैमन्तेषु धारं गुणाधिकम् । टीका-अब जलके नाम और गुण कहतेहै पानीय सलिल नीर कीलाल जल अमृत आप वारि वारक तोय पय पाथ तथा उदक ॥ १ ॥ जीवन अंभ अर्ण अमृत घनरस यह पानीके नाम हैं जल श्रमहरता क्लमहर मूर्छा पिपासाकों हरता निद्रा वमन विबन्ध इनकों हरता बलकर निद्राहरता तर्पण हृद्य गुप्तरस अजीर्णशमक नित्य हित शीतल होताहै हलका स्वच्छ रसकारण अमृतके समान जीवन कहाहै ॥ २॥ उसके भेद मुनियोंने जल दो प्रकारका कहाहै दिव्य और भौम दिव्य चारप्रकारका कहाहै धारका ओलोंका ॥ ३ ॥ तुषारका तथा हैमन्तमें धारका गुणमें अधिक होताहै।
For Private and Personal Use Only