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कृतान्नवर्गः ।
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टीका - अनन्तर सत्तू भांडमें धान्य भूने चकीसें पीसे हुवे सत्तू हैं जबका सत्तू शीतल दीपन हलका सर ॥ १६० ॥ कफपित्तकों हरता लेखन कहा है वे पीयेहुवे बलकों देनेवाले शुक्रकारक पुष्ट भेदन || १६१ ॥ तर्पण मधुर रुचिकों करनेवाले और परिणाममें बलकों हरतेहैं कफ पित्त भ्रम क्षुधा तृषावृद्धि नेत्ररोग इनकों हरते हैं ॥ १६२ ॥ घर्मदाहाढ्य कसरतपीडित शरीरवालोंकों हित हैं अथ चनेजवा सत्तू छिलकेसे रहित चनोंकों भूनकर और चौथाई जबसें बनायाहुवा १६३ सत्तू शर्कराघृतसें युक्त ग्रीष्म में अतिपूजित है अथ धानका सत्तू धानका सत्तू अग्निदीपन हलका शीतल ॥ १६४ ॥ मधुर काविज रुचिकों करनेवाला पथ्य बल शु
hi देनेवाला है न भोजन करके न दांतोंसें काटकर न रात्रमें न बहुत ॥ १६५ ॥ न जलसें अन्तरित और उस सत्तूकों केवल न खावै अलग पान फिरसे दैनानां - सजल रात ॥ १६६ ॥ दन्तछेदन और गरम यह सात सत्तू में त्यागदेवै वेछिलकेके भूने जव स्त्रीलिंग में धाना इसप्रकार कहाते हैं ॥ १६७॥ धाना दुर्जर रूखे तृषा दाहकों देनेवाले भारी है तथा प्रमेह कफ वमन इनकों हरनेवाले हैं ॥ १६८ ॥ खीलां जिनके चावल होते हैं वोह छिलकेके सहित धान भुनेहुवोंकों विद्वानोंने लाजा इसप्रकार कहाहै ॥ १६९ ॥ खीला मधुर शीतल हलका दीपन होती है वे अल्प मलमूत्रकों करनेवाले रूखे बलकों करनेवाले हैं और पित्तकफकों काटनेवाले हैं ॥ १७० ॥ तथा वमन अतीसार दाह रक्त मेद मेह तृषा इनकों हरते हैं.
अथ चिपिटऊचीकुल्माषगुणाः.
शालयः सतुषा आर्द्रा भृष्टा अस्फुटिताश्च तत् ॥ १७१ ॥ कुट्टिताश्चिपिटाः प्रोक्तास्ते स्मृताः पृथुका अपि । पृथुका गुरवो वातनाशनाः श्लेष्मला अपि ॥ १७२ ॥ सक्षीरा बृंहणा वृष्या बल्या भिन्नमलाश्च ते । अर्धपक्कैः शमीधान्यैस्तृगामृष्टैश्च होलकः ॥ १७३ ॥ Front seपानिलो मेदः कफदोषत्रयापहः । भवेद्यो होलको यस्य स च ततद्गुणो भवेत् ॥ १७४ ॥ मञ्जरीत्वर्द्धपकाया यवगोधूमयोर्भवेत् ।
तृष्णानलेन संभृष्टा बुधैरूचीति सा स्मृता ॥ १७५ ॥
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