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हरीतक्यादिनिघंटे पित्तश्लेष्मकरं किञ्चित्सुरुच्यं वह्निबोधनम् । भागैकं निम्बुजं तोयं षड्भागं शर्करोदकम् ॥ १४९॥ लवङ्गमरिचैमिश्रं पानं पानकमुत्तमम् । निम्बूफलभवं पानमत्यम्लं वातनाशनम् ॥ १५०॥ वह्रिदीप्तिकरं रुच्यं समस्ताहारपाचकम् । शिलायां साधु सम्पिष्टं धान्यकं वस्त्रगालितम् ॥ १५१॥ शर्करोदकसंयुक्तं कर्पूरादिसुसंस्कृतम् ।
नूतने मृण्मये पात्रे स्थितं पित्तहरं परम् ॥ १५२ ॥ टीका-शीतल जलसें घोलीहुई सुफेदचीनी ॥ १४२ ॥ और इलायची ल. वङ्ग कपूर मरिच इनसे युक्त शर्करोदक नामसें प्रसिद्ध पंडितोंके सुखमेंहै ॥ १४३ ॥ शर्करोदक प्रसिद्ध है शुक्रकों करनेवाला शीतल सरहै और बलके हित रुचिकों करनेवाला हलका मधुर वातपित्तकों हरता है ॥ १४४-॥ और मूर्छा वमन तृषा दाह ज्वरकी शान्तिकों करनेवाला है अथ पनेकी कृति उस्में आमका पना कच्चे आमको पानीमें उवालके हाथसें खूब मलै ॥ १४५ ॥ चीनी और शीतलजलसे युक्त और कपूर मरिचके साथ यह प्रपानक श्रेष्ठ भीमसेनका वनयाहुवा ॥ १४६ ॥ तकाल रुचिकों करनेवाला बलकेहित शीघ्र इन्द्रियका तर्पणहै पकी इमलीको पानीके साथ खूब मलै ॥ १४७ ॥ शक्कर और मरिचसे युक्त और लवङ्ग कपूरसे सुवासित यह इमलीका पना वातकों हरता है ॥ १४८ ॥ और पित्त कफकों करनेवाला किंचित् तथा रुचकर दीपन है निम्बूका पना एकभाग नीम्बूका रस छः भाग सरबत ॥ १४९ ॥ लोंग मिरचसे युक्त पना पनामें श्रेष्ठ है निंबूका पना बहुत खट्टा वातहरता ॥ १५०॥ अग्निदीपन रुचिकर सम्पूर्ण आहारकों पकानेवाला है धनियाका पना सिलपर अच्छीतरह पिसा हुवा धनिया कपडछान करकै ॥ १५१ ॥ सर्वतके सहित कपूर आदिसे युक्त नवीन मिट्टीके वरतनमें रख्खाहुआ परमपित्तकों हरता है ॥ १५२॥
अथ कांजिकजाली तथा तक्रगुणाः. काञ्जिविधिर्वटकावसरे लिखितः। कालिकं रोचनं रुच्यं पाचनं वह्निदीपनम् ।
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