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कृतान्नवर्गः। छागादेः सकलस्यापि खण्डान्यपि च भर्जयेत् ॥ ८५॥ सिद्धयोग्यं जलं दत्वा पचेन्मृदुतरं तथा। जीरकादियुते तके मांसखण्डानि तारयेत् ॥ ८६ ॥ तक्रमांसं तु वातघ्नं लघु रुच्यं बलप्रदम् । कफघ्नं पित्तलं किञ्चित्सर्वाहारस्य पाचनम् ॥ ८७॥ पाकपात्रे तु बृहती मांसखण्डानि निःक्षिपेत् । पानीयं प्रचुर सर्पिः प्रभूतं हिड जीरकम् ॥ ८८ ॥ हरिद्रामाकं शुण्ठी लवणं मरिचानि च । तण्डुलांश्चापि गोधूमान् जम्बीराणां रसान बहून् ॥ ८९॥ यथा सर्वाणि वस्तूनि सुपक्कानि भवन्ति हि। यथा पचेत्तु निपुणो बहुमांसं क्षितिर्यथा ॥९०॥ एषा हरीसा बलकद्वातपित्तापहा गुरुः ।
शीतोष्णा शुक्रदा स्निग्धा सरा सन्धानकारिणी ॥ ९१॥ टीका-सहर्वासु ऐसा लोकमें कहतेहैं बकरे आदिके जांघ आदिका मांस कुटाहुवा अलग अलग टुकड़े कियेहुवे ॥ ८३ ॥ इसकों शुद्धमांसकी विधीसें पकावै यह सहाद्रकहै सहद्रके निघंटमें शुद्धमांसके समान गुणमें कहाहै ॥ ८४ ॥ पकानेके पात्रमें घृत डालकर हलदी और हींगकों भूनें और बकरे आदिके सबके मांसके टुकडोंकोंभी भूनें ॥८६॥ पकनेके योग्य जल देकर मन्दआंचसे पकावै जीरा आदिकसे युक्त महेमें मांसके टुकडोंकों डालै॥८६॥ यह तक्रमांस वातहरता हलका रुचिकों करनेवाला बलकों देनेवाला कफहरता पितकों करनेवाला कुछ सब आहारका पाचकहै॥८७॥ पकानेके वरतनमें वेडे मांसके टुकडे डालै पानी बहुतसा घृत बहुत हीङ्ग जीरा ८८ अद्रक हलदी सोंठ लवण मिरच चावल और गेहूं जम्बीरीका बहुत रस ॥ ८९॥ जिसमें सब मांस अच्छीतरह पकजावै वैसे सब वस्तुवोंकों निपुण पकावै जैसे बहुत मांसमें क्षिति ॥ ९० ॥ यह हरीसा बलकों करनेवाला वातपित्तकों हरता भारी शीत उष्ण शुक्रकों करनेवाला चिकना सर सन्धान करनेवाला है ॥ ९१ ॥
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