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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ अण्डादिगुणाः. गुरुण्यण्डानि सर्वेषां गुर्वी ग्रीवा च पक्षिणाम् ॥ १०० ॥ उरः स्कन्धोदरं कुक्षी पादौ पाणी कटी तथा । पृष्ठत्वग्यरुदन्त्राणि गुरूणीह यथोत्तरम् ॥ १०१ ॥ लघु वातकरं मांसं खगानां धान्यचारिणाम् । मत्स्याशिनां पित्तकरं वातघ्नं गुरु कीर्तितम् ॥ १०२ ॥ पलाशिनां श्लेष्मकरं लघु रूक्षमुदीरितम् । बृंहणं गुरु वातघ्नं तेषामेवं पलाशिनाम् ॥ १०३ ॥ तुल्यजातिश्वापदेहा महादेहेषु पूजिताः । अल्पदेहेषु शस्यन्ते तथैव स्थूलदेहिनः ॥ १०४॥ रक्तोदरो रक्तमुखो रक्ताक्षो रक्तपक्षतिः । कृष्णपुच्छो झषश्रेष्ठो रोहितः कथितो बुधैः ॥ १०५ ॥ रोहितः सर्वमत्स्यानां वरो वृष्योऽर्दितार्त्तिजित् । कषायानुरसः स्वदुर्वातघ्नो नातिपित्तकृत् ॥ १०६॥ टीका - सर्व पक्षियोंके अंडे भारी और गरदनभी भारी होती है और छाती कन्धा उदर कूख पाम हाथ तथा कमर पीठ त्वचा यकृत आंत यह यथोत्तर भारी है ॥ १०१ ॥ धान चरनेवाले पक्षियोंका मांस हलका और वात करनेवाला है और मछली खानेवालोंका पित्त वात हरता भारी कहाहै ॥ १०२ ॥ मांस खानेवालोंका कफ करनेवाला हलका रूखा कहा है उन्हीके मांस खानेवालोंका मांस पुष्ट भारी वात हरता है || १०३ || समान जातिवाले बडे देहवालोंमें अल्पदेहवाले श्रेष्ठ हैं उसीप्रकार अल्पशरीरवालोंमें स्थूलदेहवाले प्रशस्त हैं ॥ १०४ ॥ मछलियोंमें रोहका मांस लाल उदर लाल मुख लाल पैर काली पूछ मछलियों में श्रेष्ठ पंडितोंनें कहा है ॥ १९५ ॥ रोह सब मछलियोंमें श्रोष्ठ शुक्रकों करनेवाली अर्दितरोगकों हरनेवाली पीछे कसैली मधुर वातहरती न बहुत पित्तकों करनेवाली है || १०६ ॥ रोहका शिर गले के ऊपरके रोगोंकों हरता है. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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