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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मांसवर्गः। वयस्यं बृंहणं सात्म्यमन्यथा तद्विवर्जयेत् ॥ ९४ ॥ स्वयं मृतस्य चापल्यमतीसारकरं गुरु। बृद्धानां दोषलं मांसं बालानां बलहल्लघु ॥ ९५ ॥ सर्पदष्टस्य तु प्रोक्तं शुष्कमांसं त्रिदोषकत् । व्यालदृष्टं च दुष्टं च शुष्कं शूलकारं परम् ॥ ९६ ॥ विषाम्बुरुङ्मृतस्यैतन्मृत्युदोषरुजाकरम् । क्लिन्नमुत्क्लेशजनकं कशवातप्रकोपनम् ॥ ९७ ॥ तोयपूर्ण शिराजालं मृतमप्सु त्रिदोषकत् । विडङ्गेषु पुमान् श्रेष्ठः स्त्री चतुष्पदजातिषु ॥ ९८ ॥ पराधों लघुपुंसां स्यात्स्त्रीणां पूर्वार्धमादिशेत् । देहमध्यं गुरुपायं सर्वेषां प्राणिनां स्मृतम् ॥ ९९ ॥ पक्षक्षेपादिहङ्गानां तदेव लघु कथ्यते। टीका-मंडूक ल्पवग भेक वर्षाभू दर्दुर हरी यह मंडूकके नाम हैं मंडूक कफकरनेवाला और बहुत पित्तकों करनेवाला नहीं है तथा बल करनेवाला है ॥९२॥ कच्छप गूढपात् कूर्म कमठ दृढपृष्ठक यह कछुवेके नाम हैं कच्छुवा बलकों देनेवाला वातपित्तकों हरता पुरुषत्वकों करनेवाला है ॥ ९३ ॥ तत्कालके मारेहुवेका मांस रोगहरता जैसे अमृत वयके हित पुष्ट सात्म्य होताहै और इस्सें विरुद्ध उस्को त्याग देवे ॥ ९४ ॥ आपही मरेहुवेका मांस बलहरता अतीसारको करनेवाला भारी होता है वृद्ध और बालका मांस वृद्धोंका मांस दोषकारक और बच्चोंका मांस बलकों देनेवाला हलका होता है ॥ ९५ ॥ सांपके काटेहुवेका मांस और सूका मांस त्रिदोषकारकहै सांपके काटेहुवेका मांस और दुष्ट तथा मूका मांस परम शूलकारक है ॥ ९६ ॥ विष जल और रोग इनसे मरेहुवेका मांस मृत्यु दोष रोग इनकों करनेवाला है और सडा उत्क्लेशकों करनेवाला कृश वातके प्रकोपको करनेवाला है ॥ ९७ ॥ जलमें मराहुवा जलसे भरा शिराजालवाला ऐसा मांस त्रिदोषकों करनेवाला है पक्षियोंमें नर श्रेष्ठ और चौपायोंमें स्त्री श्रेष्ठ है ॥ ९८॥ नरोंका पिछला हिस्सा हलका होता है और स्त्रीयोंका अगला हिस्सा हलका सब जीवोंका मध्यदेह प्रायः भारी कहाहै ॥ ९९ ॥ पक्षक्षेपसें परिन्दोंका वोही हलका कहाहै. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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