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हरीतक्यादिनिघंटे
अथ पक्ष्यण्डछागनामगुणाः. नातिस्निग्धानि वृष्याणि स्वादुपाकरसानि च ॥७३॥ वातघ्नान्यपि शुक्राणि गुरूण्यण्डानि पक्षिणाम् । छागलो वर्करइछागो वस्तोजः क्षेत्रकः स्तुभः ॥ ७४ ॥ अजा छागी स्तुभा चापि छेलिका च गलस्तनी । छागमांसं लघु स्निग्धं स्वादुपाकं त्रिदोषनुत् ॥७५ ॥ नातिशीतमदाहि स्यात्स्वादु पीनसनाशनम् । परं बलकरं रुच्यं बृंहणं वीर्यवर्धनम् ॥ ७६ ॥ अजाया अजसूताया मांसं पीनसनाशनम् । शुष्ककासेऽरुचौ शोषे हितमग्नेश्च दीपनम् ॥ ७७ ॥ अजासुतस्य वालस्य मांसं लघुतरं स्मृतम् । हृद्यं ज्वरहरं श्रेष्ठं सुखदं बलदं भृशम् ॥ ७८ ॥ मांसं निष्कासिताण्डस्य छागस्य कफगुरु । स्रोतःशुद्धिकरं बल्यं मांसदं वातपित्तनुत् ॥ ७९ ॥ वृद्धस्य वातलं रूक्षं तथा व्याधिमृतस्य च ।
ऊर्ध्वजत्रुविकारघ्नं छागलाण्डं रुचिप्रदम् ॥ ८॥ टीका-अनन्तर पक्षियोंके अंडोंका गुण न बहुत चिकने शुक्रकों करनेवाले रस और पाकमें मधुर ॥ ७३ ॥ वात हरता अतिशुक्रकों करनेवाले भारी ऐसे पक्षीयोंके अंडे होते हैं ग्राम्यमें बकरीका ॥ ७४ ॥ छागल वर्कल छागवस्त ओजक्षेलक स्तुभ यह बकरेके नाम हैं और अजा छागी स्तुभा छेलिका गलस्तनी यह बकरीके नाम छागमांस हलका चिकना पाकमें मधुर त्रिदोष हरता ॥ ७५ ॥ न बहुत शी. तल अविदाही मधुर होताहै और पीनसकों हरताहै अत्यन्त बलकों करनेवाला रुचिकों करनेवाला पुष्ट वीर्यको बढानेवालाहै ॥ ७६ ॥ विनवचोंको दीहुई बकरीका मांस पीनस हरताहै सूकीखांसीमें अरुचिमें शोषमें हितहै और अग्निदीपन है ॥७७॥ बकरीके बच्चेका मांस लघुतर कहाहै हृद्य ज्वर हरता श्रेष्ठ सुखकों देनेवाला और अत्यन्त बलकों देनेवाला है ॥ ७८ ॥ आंड निकाले हुए बकरेका मांस कफकों
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