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मांसवर्गः।
२५५ अथ हारीतमयूरपारावतनामगुणाः. हारीतो रक्तपित्तः स्याद्धरितोऽपि स कथ्यते । हारीतो रूक्ष उष्णश्च रक्तपित्तकफापहः ॥ ६७ ॥ स्वेदस्वरकरः प्रोक्त ईषद्वातकरश्च सः। पाण्डस्तु विविधो ज्ञेयश्चित्रपक्षः कलध्वनिः ॥ ६८ ॥ द्वितीयो धवलः प्रोक्तो सकपोतः स्फुटस्वनः । चित्रपक्षः कफहरो वातघ्नो ग्रहिणीप्रणुत् । धवलः पाण्डुरुद्दिष्टो रक्तपित्तहरो हिमः ॥ ६९ ॥ मयूरश्चन्द्रकी केकी मेघरावो भुजङ्गभुक् । शिखी शिखावलो बहीं शिखण्डी नीलकण्ठकः ॥७० ॥ शुक्लोपाङ्गः कलापी च मेघनादः कलाप्यपि । रसे पाके च मधुरः संग्राही वातशान्तिकत् ॥ ७१ ॥ पारावतः कलरवः कपोतो रक्तवर्धनः। पारावतो गुरुः स्निग्धो रक्तपित्तानिलापहः॥ ७२ ॥
संग्राही शीतलस्तज्ज्ञैः कथितो वीर्यवर्धनः। टीका-हारीत रक्तपीत होता है और हरितभी यह उस्का नाम है इस्को हरील इसप्रकार लोकमें कहते है हारील रूखा गरम रक्त पित्त कफकों हरता है और खेद खरकों करनेवाला कहा है तथा अल्पवातकों करनेवाला कहा है ॥६७॥ पाण्डु और धवल पाण्ड पिंडुका दो प्रकारका होता है चित्रपक्ष और कलध्वनि ॥ ६८॥ दूसरा धवल कहा है कपोत स्फुटस्वन ये पेडकीके नाम हैं चित्रपक्ष कफ हरता वात हरता और संग्रहणीकों हरता है धवल और पाण्डु रक्तपित्तकों हरता शीतल कहा है ॥६९॥ अनन्तर रमोर चन्द्रकी केकी मेघाराव भुजङ्गमुक् शिखी शिखावल बी शिखण्डी नीलकण्ठक ॥ ७० ॥ शुक्लापाङ्ग कलापी मेघनाद यह मोरके नाम हैं मोर रसपाकमें मधुर काविज वात करनेवाला है ॥ ७१ ॥ अनन्तर कबूतर परेवा पारावत कलरव कपोत रक्तवर्धन यह कबूतरके नाम हैं कबूतर भारी चिकना रक्त पित्त वातकों हरता है ॥ ७२ ॥ और काविज शीतल उसको जाननेवालोंने वीर्यका बढानेवाला कहा है.
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