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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाकवर्गः। २४१ तालुक मधुरतायुक्त रोमोंकरकेयुक्त लंबी सुथनी होतीहै ॥ ९४ ॥ रक्तालू अर्थात् शकरकन्द सब आलू शीतल विष्टम्भ करनेवाले मधुर भारी मलमूत्रकों करनेवाले रूखे दुर्जर रक्तपित्तकों हरतेहैं ॥ ९५ ॥ कफवातकों करनेवाले बलकेहित शुक्रकों करनेवाले अल्प अग्निकों बढानेवाले हैं अथ अरुई रक्तालुका भेद छीलनेमें पतला छिलका होताहै वोह अरुईहै । ९६ ॥ अरुई बलकों करनेवाली चिकनी और भारी हृदयके कफकों हरतीहै तेलमें भुनीहुई विष्टम्भ करनेवाली और रुचिकों देनेवाली है ॥ ९७ ॥ अथ मूलकरंजनकदलीवाराहीगुणाः. मूलकं द्विविधं प्रोक्तं तत्रैकं लघु मूलकम् । शालमर्कटकं विस्त्रं शालेयं मरुसम्भवम् ॥ ९८॥ चाणक्यं मूलकं तीक्ष्णं तथा मूलकपोतिका । नेपालमूलकं चान्यत्तद्भवेद्गजदन्तवत् ॥ ९९ ॥ लघुमूलं कटूष्णं स्याद्रुच्यं लघु च पाचनम् । दोषत्रयहरं स्वयं ज्वरश्वासविनाशनम् ॥ १० ॥ नासिकाकण्ठरोगनं नयनामयनाशनम् । महत्तदेव रूक्षोष्णं गुरु दोषत्रयप्रदम् ॥ १०१॥ स्नेहसिद्धं तदेव स्याद्दोषत्रयविनाशनम् । गाजरं गृञ्जनं प्रोक्तं तथा नारङ्गवर्णकम् ॥ १०२॥ गाजरं मधुरं तीक्ष्णं तिक्तोष्णं दीपनं लघु । संग्राहि रक्तपित्तामॆग्रहणीकफवातजित् ॥ १०३॥ शीतलः कदलीकन्दो बल्यः केश्योऽम्लपित्तजित् । वह्निकद्दाहहारी च मधुरो रुचिकारकः ॥ १०४ ॥ मानकः स्यान्महापत्रः कथ्यन्ते तद्गुणा अथ। मानकः शोथहृच्छीतः पित्तरक्तहरो लघुः॥ १०५॥ वाराही पित्तला बल्या कट्टी तिक्ता रसायनी । आयुःशुक्राग्निकन्मेहकफकुष्ठानिलापहा ॥ १०६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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