________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४०
२४०
हरीतक्यादिनिघंटे अथ सूरणस्यआलुककंदस्यनामानिगुणाश्च, सूरणः कन्दओलश्च कन्दलोऽशोघ्न इत्यपि। सूरणो दीपनो रूक्षः कषायः कण्डुकृत्कटुः ॥ ९० ॥ विष्टम्भी विशदो रुच्यः कफाकन्तनो लघुः। विशेषादर्शसे पथ्यः प्लीहागुल्मविनाशनः ॥ ९१ ॥ सर्वेषां कन्दशाकानां सूरणः श्रेष्ठ उच्यते । दद्दूणां रक्तपित्तिनां कुष्ठिनां न हितो हि सः ॥ ९२ ॥ सन्धानयोगं सम्प्राप्तः सूरणो गुणवत्तरः। आरुकमप्यालूकं तत्कथितं वीरसेनश्च ॥ ९३ ॥ काष्ठालुकशंखालुकहस्त्यालुकानि कथ्यन्ते । पिण्डालुकसप्तालुकरक्ताद्यकानि चोक्तानि ॥ ९४ ॥ आलुकं शीतलं सर्वं विष्टम्भि मधुरं गुरु । सृष्टमूत्रमलं रूक्षं दुर्जरं रक्तपित्तनुत् ॥ ९५ ॥ कफानिलकरं वल्यं वृष्यं स्वल्पाग्निवर्धनम् । रक्तालुभेदे पटिका तन्वी च प्रथिताल्लुकी ॥ ९६ ॥ आलुकी बलकस्निग्धा गुर्वी हत्कफनाशिनी ।
विष्टम्भकारिणी तैले तलितातिरुचिप्रदा ॥ ९७ ॥ ठीका-उनमें सूरनके नाम और गुण सूरणकन्द अलुकन्द अर्शोघ्न यह सूरनके नाम हैं सूरन दीपन रूखा कसेला खाज करनेवाला कटु होताहै ॥ ९० ॥ और विष्टम्भ करनेवाला विशद रुचिकों करनेवाला कफ बवासीरकों हरता और हलकाहै विशेषकरके बवासीरमें पथ्यहै और पिलही वायगोला इनकों हरताहै ॥ ९१॥ सब कन्दशाकोंमें सूरण श्रेष्ठ कहाहै दादवाले और रक्तपित्तवाले तथा कुष्टवाले इनकों वोह हितहै ॥ ९२ ॥ सन्धान योगमें प्राप्त हुवा सुरण अधिक गुणवाला होताहै आरुक आलूक यह आलूके नाम, वीरसेननेभी कठियाआलु संखालु हस्त्यालु कहेहैं ॥ ९३ ॥ पिंडीलू सप्तालुक रक्तालु यह कहाहै काष्ठालुक काठिन्ययुक्त कढारु शङ्खालक श्वेततायुक्त शङ्खारु हस्त्यालक दीर्घतायुक्त बडा पिंडालु गोल सुथनी स
For Private and Personal Use Only