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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे शूलकुष्ठक्षयश्वासगुल्महद्दीपनं परम् ॥ ७७॥ वृन्ताकं स्त्री तु वार्ताकुर्भण्टाकी भाण्टिकापि च । वृन्ताकं स्वादु तीक्ष्णोष्णं कटुपाकमपित्तलम् ॥ ७८ ॥ ज्वरवातबलासघ्नं दीपनं शुक्रलं लघु । तद्वालं कफपिसुघ्नं वृद्ध पित्तकरं लघु ॥७९॥ तृन्ताकं पित्तलं किञ्चिदङ्गारपरिपाचितम् । कफमेदोनिलामनमत्यर्थं लघु दीपनम् ॥ ८० ॥ तदेव च गुरु स्निग्धं सतैलं लवणान्वितम् । अपरं श्वेतवन्ताकं कुक्कुटाण्डसमं भवेत् ॥ ८१ ॥ तदर्शःसु विशेषेण हितं हीनं च पूर्ववत् । टीका-शिम्बि शिम्बी पुस्तशिम्बी तथा पुस्तकशिम्बिका यह सैमके नाम हैं दोनों सैम मधुर रस और पाकमें और शीतल भारी है । ७४ ॥ बलके हित दाहकर कफकों करनेवाले और वातपित्तको हरनेवाले है सुवरासैम इसकों आलकुशीभी कहतेहैं ॥ ७५ ॥ कालशिम्बी कृष्णफला तथा पर्यङ्कपट्टिका यह आलकुशीके नाम, आलकुशी वातहरती भारी उष्ण कफपित्तकों करनेवाली है और शुक्र अग्निमान्य इनकों करनेवाली शुक्रकों करनेवाली रुचिकों करनेवाली मलकों बांधनेवाली भारी है ॥ ७६ ॥ सहिजनेका फल मधुर कसेला कफपित्तकों हरताहै और शूल कुष्ठ क्षय श्वास वायगोला इनकों हरता और और अत्यंत दीपन है ॥ ७७ ॥ वृन्ताक वारीक भंटाकी भाण्टिका यह बैंगनके नाम, बैंगन मधुर तीखा उष्ण पाकमें कटु और पित्तकों न करनेवाला है ॥ ७८॥ और ज्वर वात कफ इनकों हरताहै दीपन शुक्रकों करनेवाला हलका है वैसेही कच्चा कफ पित्तको हरता और बडा पित्तकों करनेवाला हलका होताहै ॥ ७९ ॥ अंगारेपर पकाहुवा कुछक पित्तकों करनेवाला है और कफ मेद वात आम इनकों हरता अत्यन्त दीपन हलका है ॥ ८०॥ वोही भारी चिकना तेल और लवणके युक्त होता है दूसरा सफेद बैंगन मुरगेके अण्डेके समान होताहै ॥ ८१ ॥ वह बवासीरमें विशेषकरके हितहै और पूर्ववत् हीनभीहै. अथ डिण्डिशपिण्डारकर्कोटकीविषमुष्टिकंटकारीगुणाः, डिण्डिशो रोमशफलो मुनिनिर्मित इत्यपि ॥८२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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