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शाकवर्गः।
२३७ स्निग्धोष्णं हन्ति कासास्त्रज्वरदोषत्रयकमीन् । पटोलस्य भवेन्मूलं विरेचनकरं सुखात् ॥ ७॥ नालं श्लेष्महरं पत्रं पित्तहारि फलं पुनः । दोषत्रयहरं प्रोक्तं तदत्तिक्ता पटोलिका ॥ ७१ ॥ बिम्बी रक्तफला तुण्डी तुण्डकेरी च बिम्बिका।
ओष्ठोपमफला प्रोक्ता पीलुपर्णी च कथ्यते ॥ ७२ ॥ बिम्बीफलं स्वादु शीतं गुरु पित्तास्त्रवातजित् ।
स्तम्भनं लेखनं रुज्यं विबन्धाध्मानकारकम् ॥ ७३ ॥ टीका-पटोल कूलक तिक्त पाण्डुक कर्कशच्छद राजीफल पाण्डुफल राजेय अमृताफल ॥ ६८ ॥ बीजगर्भ प्रतीक कुष्ठहा कासभञ्जन यह परवलके नाम, परवल पाचन हृद्य शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला हलका अग्निदीपन ॥ ६९॥ चिकना उष्णहै और कास श्वास ज्वर तीनों दोष कृमि इनको हरताहै पखलकी जड सुखसे विरेचन करनेवाली है ॥ ७० ॥ नाल कफहरता पत्र पित्तहरता और फल त्रिदोष हरता कहाहै उसीप्रकार तिक्त पटोलिका है ॥ ७१ ॥ बिम्बी रक्तफला तुण्डिकेरी विम्बिका ओष्ठोपमफला पीलुपी यह कुन्दुरूके नामहैं ॥ ७२ ॥ कुन्दुरुफल मधुर शीतल भारी रक्त पित्त वात इनको हरनेवाला है स्तंभन लेखन रुचिकों करनेवाला विबन्ध और आध्मान करनेवाला है ॥ ७३ ॥
अथ शिंबीसौभांजनठंताकगुणाः. शिम्बिः शिम्बी पुस्तशिम्बी तथा पुस्तकशिम्बिका। शिम्बीद्वयं च मधुरं रसे पाके हिमं गुरु ॥ ७४ ॥ बल्यं दाहकरं प्रोक्तं श्लेष्मलं वातपित्तजित् । कोलशिम्बिः कृष्णफला तथा पर्यङ्कपट्टिका ॥ ७५॥ कोलशिम्बिः समीरनी गुर्युष्णा कफपित्तरुत् । शुक्राग्निसादकत्प्रोक्तो रुचिदा बद्धविड्गुरुः ॥ ७६ ॥ सौभांजनफलं स्वादु कषायं कफपित्तनुत् । .
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