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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीः। हरीतक्यादिनिघंटे अथ धान्यवर्गः। तत्र धान्यानां भेदाः. शालिधान्यं व्रीहिधान्यं शूकधान्यं तृतीयकम् । शिम्बीधान्यं क्षुद्रधान्यमित्युक्तं धान्यपञ्चकम् ॥ १॥ शालयो रक्तशाल्याद्या व्रीहयः षष्टिकादयः । यवादिकं शुकधान्यं मुद्गाद्यं शिम्बिधान्यकम् ॥ २ ॥ कङ्ग्वादिकं क्षुद्रधान्यं तृणधान्यं च तत्स्मृतम् । रक्तशालिः सकलमः पाण्डुकः शकुनाहृतः । सुगन्धकः कर्दमको महाशालिश्च दूषकः ॥ ३॥ पुष्पाण्डकः पुण्डरीकस्तथा महिषमस्तकः । दीर्घशूकः काञ्चनको हायनो लोध्रपुष्पकः ॥ ४ ॥ इत्याद्याः शालयः सन्ति बहवो बहुदेशजाः। ग्रन्थविस्तरभीतेस्ते समस्ता नात्र भाषिताः॥५॥ टीका- उस्में धान्योंके भेद शालिधान्य त्रीहिधान्य तीसरा शूकधान्य शिम्बीधान्य क्षुद्रधान्य इसप्रकार सात धान्य कहेहैं ॥१॥ लाल धान्य शालिधान्य और साठी आदि व्रीहिधान्य जव आदिक शूकधान्य मूंग आदि शिम्बीधान्य ॥२॥ और कंगुनीआदि क्षुद्रधान्य तथा उस्से तृणधान्यभी कहते हैं उस्में शालिधान्यका लक्षण और गुण विनाकूटे सुफेद और हेमन्तमें होनेवाले शालिधान्य कहेगये हैं लालधान्य कलमीधान्य पांडुक शकुनाहत सुगन्धक कर्दमक महाशाली दूषक ॥ ३ ॥ पुष्पांडक पुण्डरीक तथा महिषमस्तक दीर्घशूक कांचनक हायन लोध्रपुष्पक ॥४॥ इतने प्रकारके धान्य हैं और बहुतप्रकारके बहुतसे देशोंमें होतेहैं ग्रन्थ बढजानेके भयसें सब यहां पर नहीं कहे ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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