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हरीतक्यादिनिघंटे
वालुका सिकता प्रोक्ता शर्करा रेतजापि च । वालुका लेखनी शीता व्रणोरःक्षतनाशिनी ॥ १४४॥
टीका - खटिका खटिनी लेखनी यह खडियाके नाम हैं खडिया दाहकों हरनेवाली शीतल मधुर और विष शोथकों हरनेवाली है ।। १४२ || लेपसे यह कहुवे गुण होते हैं और खानेसें मट्टीके समान होती है खडिया और सफेद खडिया दोनों गुणमें समान कहे हैं ।। १४३ ॥ वालुका सिकता शर्करा रेतजा यह वालूके नाम हैं बालू लेखन शीतल है और व्रण उरःक्षत इनको हरनेवाली है ।। १४४ ।। अथ खर्परीकासीस तथा सौराष्ट्रगुणाः.
खर्परी तुत्थकं तुत्थादन्यत्तद्रसकं स्मृतम् । ये गुणास्तुत्थके प्रोक्तास्ते गुणा रसके स्मृताः ॥ १४५ ॥ कासीसं धातुकासीसं पांसुकासीसमित्यपि । तदेव किंचित्पीतं तु पुष्पकासीसमुच्यते ॥ १४६ ॥ कासीसमम्लमुष्णं च तिक्तं च तुवरं तथा । वातश्लेष्महरं केश्यं नेत्रकण्डूविषप्रणुत् ॥ १४७ ॥ मूत्रकृच्छ्राश्मरीश्वित्रनाशनं परिकीर्त्तितम् । सौराष्ट्री तुवरी काक्षी मृत्तालकसुराष्ट्रजे ॥ १४८ ॥ आढकी चापि साख्याता मृत्स्ना च सुरमृत्तिका । स्फटिकाया गुणाः सर्वे सौराष्ट्र्यमपि कीर्त्तिताः ॥ १४९ ॥
टीका - खपरिया यह लीलाथोथेका भेद है खर्परी तुत्थक है इस्सें दूसरीकों रसक कहा है जो गुण लीलेथोथे में कहें हैं वोही गुण खपरिया में कहें हैं ॥ १४५ ॥ कासीस धातुकासीस पांशुकासीस यह कासीसके नामहैं वोही कुछ एक पीलीकों पुष्पकासीस कहते हैं ॥ १४६ ॥ कासीस खट्टी गरम तिक्त तथा कसेली और वात पित्त कफकों हरता केशके हित तथा नेत्रकी खुजली विष इनकों हरती है || १४७॥ और मूत्र पथरी श्वित्र कुष्ठ इनकी नाशक कही गई है सौराष्ट्री तुवरी काक्षी मृत्तालक मुराष्ट्रज ॥ १४८ ॥ आढकी भी वोह कही गई है और मृत्स्ना तथा सुरमृत्तिका यहभी उस्के नाम हैं स्फटिकाके सब गुण सोरठीमें कहे हैं ॥ १४९ ॥
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