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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातुरसरत्नविषवर्गः। तिक्तं कषायं कटु हिलङ्गु स्यान्नेत्रामयघ्नं कफपित्तहारि १०१ हृल्लासकुष्ठज्वरकामलांश्च प्लीहामवातौ च गरं निहन्ति । ऊर्ध्वपातनयुक्त्या तु डमरुयन्त्रपाचितम् ॥ १०२ ॥ हिडलं तस्य सूतं तु शुद्धमेवं न शोधयेत्। टीका-सिंगरफके नाम और गुण हिंगुल दरद म्लेच्छ इंगुल पूर्णपारद यह शिंगरफके नाम हैं शिंगरफ तीनप्रकारका होताहै चार शुक्रतुण्डक ॥ ९९ ॥ और तीसरा हंसपाद यह उत्तरोत्तर गुणमें अधिक चार सफेद होताहै और पिलहीके सहित शुकतुण्डक होताहै ॥ १०० ॥ हंसपाद जवाफूलके समान होताहै वोह बहुत उत्तम है तिक्त कसेला कडवा हिंगुल होताहै और नेत्ररोगकों हरता तथा कफपितकों हरताहै ॥ १०१ ॥ और हल्लास कुष्ठ ज्वर कामला इनकों तथा पिलही आमवात और विष इनकोंभी हरताहै ऊर्ध्वपातनकी युक्ति अथवा डमरुयंत्रसें पकायाहुवा ॥ १०२ ॥ हिंगुल उस्का पारा इसप्रकार सिद्ध होताहै इस्को शोधन न करै. अथ गन्धकस्योत्पत्तिर्नामलक्षणगुणाश्च. श्वेतद्वीपे पुरा देव्याः क्रीडन्त्या रजसाप्लुतम् । दुकूलं तेन वस्त्रेण स्नातायाः क्षीरनीरधौ ॥ १०३ ॥ प्रसृतं यद्रजस्तस्माद्गन्धकः समभूत्ततः। गन्धको गन्धिकश्चापि गन्धपाषाण इत्यपि ॥ १०४॥ सौगन्धिकश्च कथितो बलिबलरसादि च। चतुर्धा गन्धकः प्रोक्तो रक्तः पीतः सितोऽसितः ॥१०५॥ रक्तो हेमक्रियासूक्तः पीतश्वेतौ रसायने । व्रणादिलेपने श्वेतः कृष्णः श्रेष्ठः सुदुर्लभः ॥ १०६ ॥ गन्धकः कटुकस्तिक्तो वीर्योष्णस्तुवरः सरः। पित्तलः कटुकः पाके कण्डूवीसर्पजन्तुजित् ॥ १०७ ॥ हन्ति कुष्ठक्षयलीहकफवातान् रसायनः । अशोधितो गन्धक एष कुष्ठं करोति तापं विषमं शरीरे॥१०८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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