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धातुरसरत्नविषवर्गः ।
अर्श: शोथं क्षयं कहूं त्रिदोषमपि नाशयेत् । मन्दानत्वं बलहानिमुग्रां विष्टम्भितां नेत्रगदान्सकुष्ठान् । तथैव मालां व्रणपूर्विकां च करोति तापीजमिदं च तद्वत् ॥ ६२ ॥
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टीका - रूपामाखी कण्डके नाम और गुण दूसरी रूपामाखी चांदी के समान होतीहै कुछेक चांदी मिलनेसें रूपामाखी कही है ॥ ५९ ॥ उसके पीछे कहने सें हीनगुण कही गई है केवल चांदीके गुण रूपामाखीमें नहीं हैं ॥ ६० ॥ जैसे पाकमें मधुर रसमें कुछ तिक्त शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली रसायन नेत्र केहित है और पेcar रोग औe कुष्ठ पाण्डुरोग प्रमेह विष उदररोग || ६१ ॥ ववासीर सूजन क्षय कंडू विषदोष इनकों हरती है बिनसोधीहुई रूपामाखी मन्दाग्नि बलहानि विष्टम्भता नेत्ररोग कुष्ठ गंडमाला इनकों करती है ।। ६२ ।।
अथ तुत्थ ( तूतिया ) नामगुणाः.
तुत्थं वितुन्नकं चापि शिखिग्रीवं मयूरकम् । तुत्थं ताम्रोपधातुर्हि किञ्चित्ताम्रेण तद्भवेत् ॥ ६३ ॥ किञ्चिताम्रगुणं तस्माद्वक्ष्यमाणगुणं च तत् । तुत्थकं कटुकं क्षारं कषायं वामकं लघु ॥ ६४ ॥ लेखनं भेदनं शीतं चक्षुष्यं कफपित्तहृत् । विषाश्मकुष्ठकण्डूनं खर्परं चापि तत्स्मृतम् ॥ ६५ ॥
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टीका - तुत्थ वितुनक शिखिग्रीव मयूरक यह नीलेथोथेके नाम हैं नीलाथोथा तांant उपधातु और थोडे तांबे से होता है ॥ ६३ ॥ इसवास्ते थोडेसे ताम्बेके गुण और कहुवे गुण होते हैं नीलाथोथा कडवा क्षार कसेला वमन करनेवाला हलका ||६४|| लेखन भेदन शीतल नेत्रके हित कफ पित्तकों हरता है और विष अश्मरी कुष्ठ कण्डू इनकों हरता है और खपरियाभी उसीके समान गुणमें है ॥ ६५ ॥
अथ कांस्यनामगुणाः.
ताम्रत्र पुजमाख्यातं कांस्यं घोषं च कंसकम् । उपधातुर्भवेत् कांस्यं द्वयोस्तरणिरङ्गयोः ॥ ६६ ॥ कांसस्य तु गुणा ज्ञेयाः स्वयोनिसदृशा जनैः 1