________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धातुरसरत्नविषवर्गः।
१८३ तानं कषायं मधुरं च तिक्तमम्लं च पाके कुटु सारकं च । पित्तापहं श्लेष्महरं च शीतं तद्रोपणं स्याल्लघु लेखनं च ॥२६॥ पाण्डूदरार्थीज्वरकुष्ठकासश्वासक्षयान् पीनसमम्लपित्तम् । शोथं कमि शूलमपाकरोति प्राहुः परे हणमल्पमेतत् ॥२७॥
एको दोषो विषे ताने त्वसम्यङ्मारितेऽष्ट ते।
दाहः स्वेदो रुचिर्मूर्छा क्लेदो रेको वमिर्धमः ॥ २८॥ टीका-तांबेकी उत्पत्ति नाम लक्षण और गुणकों कहतेहै कार्तिकेयका जो शुक्र पृथ्वीपर गिरा उस्से तांबा उत्पन्न हुवा ऐसा पहिले लोगोंने कहाहै ॥ २२ ॥ ताम्र औदुम्बर शुल्ब उदुंबर रविप्रिय म्लेच्छमुख और सूर्य के पर्याय नाम यह तांबेके नाम हैं ॥ २३ ॥ जवाफूलके सदृश वर्ण चिकना मुलायम चोटको सहनेवाला लोहा शीसा इनसे रहित तांबवा फूकनेकेवास्ते अच्छा होताहै ॥ २४ ॥ काला रूखा अतिश्वेत और चोटकों सहनेवाला लोहशीसोंसे युक्त ऐसा तांबा खराब कहाहै ॥ २५ ॥ तांबा कसेला मधुर तिक्त अम्ल पाकमें कटु और सारक तथा पित्तकों हरता कफहरता शीतल होता है और वोह रोपण और हलका लेखनभी होताहै ॥ २६ ॥ और पाण्डुरोग उदररोग ज्वर कुष्ठ कास श्वास क्षय पीनस अम्लपित्त शोथ कृमि शूल इनकों हरताहै और आचार्य उस्कों अल्प बृंहणभी कहतेहैं ॥२७॥ विषमें एकदोष और अच्छीतरह नफुकेहुवेमें आठ दोष होते हैं दाह खेद अरुचि मूर्छा क्लेद वमन विरेचन भ्रम यह आठ दोषहैं ॥ २८ ॥
अथ वङ्गस्य नामलक्षणगुणाः. रक्तं वङ्गं त्रपु प्रोक्तं तथा पिच्चटमित्यपि । खुरकं मिश्रकं चापि द्विविधं वङ्गमुच्यते ॥ २९ ॥ उत्तमं खुरकं तत्र मिश्रकं त्ववरं मतम् । रङ्गं लघु सरं रूक्षमुष्णं मेहकफल्मीन् ॥ ३०॥
निहन्ति पाण्डं सश्वासं चक्षुष्यं पित्तलं मनाक् । सिंहो यथा हस्तिगणं निहन्ति तथैव वङ्गोऽखिलमेहवर्गम् । देहस्य सौख्यं प्रबलेन्द्रियत्वं नरस्य पुष्टिं विदधाति नूनम्३१
For Private and Personal Use Only