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आम्रादिफलवर्गः। स्याजम्बीरी दन्तशठा जम्भजम्भीरजम्भलाः। जंबीरमुष्णं गुर्वम्लं वातश्लेष्मविबन्धनुत् ॥ १३० ॥ शूलकासकफोकेशर्दितृष्णामदोषजित् । आस्यवैरस्यहृत्पीडावह्निमान्द्यरूमीन्हरेत् ॥ १३१॥
स्वल्पजम्बीरिका तद्वत्तृष्णाछर्दिनिवारिणी। टीका-अब विजोरेका भेद मधुककडी और किस्मके विजोरेको मधुककडी कहतेहैं मधुककडी मधुर रुचिकों करनेवाली शीतल भारी रक्तपित्त क्षय श्वास कास हिचकी भ्रम इनकों हरतीहै ॥ १२९ ॥ अथ दोनों किस्मके जंबीरीनींबू जंबीर दन्तशठ जम्भ जम्भीर जम्भल यह जंबीरी नींबूके नाम हैं जंबीर उष्ण भारी खट्टा वात कफ निबन्ध इनकों हरता ॥ १३० ॥ और शूल कास कफ मतली वमन तृषा और आमदोष इनको हरनेवालीहै और मुखकी विरसता हृदयपीडा अग्निमान्य कृमि इनकों हरता है ॥ १३१॥
नींबू मीठानींबू तथा कर्मरंगगुणाः. निम्बू स्त्री निम्बुकं क्लीबे निम्बूकमपि कीर्तितम्।
निम्बूकमम्लं वातघ्नं दीपनं पाचनं लघु ॥ १३२ ॥ निम्बुकं कमिविमोहनाशनं तीक्ष्णमम्लमुदरग्रहापहम् । वातपित्तकफशूलिने हितं कष्टनष्टरुचिरोचनं परम् ॥ १३३ ॥ त्रिदोषवह्निक्षयवातरोगनिपीडितानां विषविह्वलानाम् । मन्दानले बदगुदे प्रदेयं विषूचिकायां मुनयो वदन्ति॥१३४॥ मिष्टं निम्बूफलं स्वादु गुरु मारुतपित्तनुत् । गररोगविषध्वंसि कफोत्क्लेशि च रक्तहृत् ॥ १३५॥ शोषारुचितृषाछर्दिहरं बल्यं च बृंहणम् ।
कर्मरङ्गं हिमं ग्राहि स्वादम्लं कफवातहत् ॥ १३६ ॥ टीका-छोटी जंबीरी उसीके समान गुणमें होती है और तृषा वमनकों नाश करनेवालीहै नींबू ये स्त्रीलिंगमें और नपुंसकलिंगमें निंबुक और निंबूकभी कहागयाहै नीबू खट्टा वातहरता दीपन पाचन हलका होताहै ॥ १३२ ॥ नीबू कृमि मोह
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