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हरीतक्यादिनिर्घटे
टीका - कपित्थ, दधित्थ, पुष्पफल, यह कैथके नाम ॥ ५९ ॥ और कपि - प्रिय, दधिफल, तथा दन्तशठ, यहभी कैथके नामहैं. कच्चा कैथ काविज, कसेला, हलका, रेचन, होता है ॥ ६० ॥ और पका हुवा भारी, होता है और तृषा, हिचकी इनका शमन करनेवाला, वातपित्तकों हरता है ॥ ६१ ॥
अथ नारंगी तथा तेंदुकनामगुणाः.
नारङ्गो नागरङ्गः स्यात्त्वक्सुगन्धः सुखप्रियः । नारङ्गो मधुराम्लः स्याद्रेोचनं वातनाशनम् ॥ ६२ ॥ अपरं त्वम्लमत्युष्णं दुर्जरं वातहत् सरम् । तिंदुकः स्फूर्जकः कालस्कन्धश्च सितकारकः ॥ ६३॥ स्यादामं तिंदुकं ग्राहि वातलं शीतलं लघु । पक्कं पित्तप्रमेहास्त्रश्लेष्मलं मधुरं गुरु ॥ ६४ ॥
टीका - नारंग नागरंग खक्सुगंध सुखप्रिया ये नामहैं और यह मोठी है खट्टी है रोचक है और वातको नाश करती है ॥ ६२ ॥ और दूसरे प्रकारकी नारंगी खट्टी है अतिगरम वा दुर्जर है वातकों नाश करती है तिन्दुक स्फूर्जक कालस्कन्ध सितकारक ये नाम हैं ॥ ६३ ॥ और इस्का कच्चाफल कुब्ज करहै बातकों पैदा करता है और शीतल होता है हलका है और पका हुआ फल पित्त प्रमेह रक्तदोष पथरी इनोंकों नाश करता है मीठा है और भारी है यह तेंदुट्टक्ष दीर्घपत्तोंवाला जलके देशमें होता है ॥ ६४ ॥ अथ कुपीलुः तिन्दुकभेदः.
( तस्य फलं कुचिलाइति लोके मधुरतेंदु इति च । ) तिन्दुको यस्तु कथितो जलदो दीर्घपत्रकः । कुपीलुः कुलकः कालस्तिदुकः काकपीलुकः ॥ ६५॥ काकेन्दुर्विषतिन्दुश्च तथा मर्कटतिन्दुकः ।
कुपील शीतलं तिक्तं वातलं मदल्लघु ॥ ६६ ॥ परं व्यथाहरं ग्राही कफपित्तास्त्रनाशनम् ।
अथ कपील वृक्षविशेष इसका फल कुचला होता है कुपील कुलक काकतिन्दुक कालपीलुक ॥ ६५ ॥ काकेन्दु विषतिन्दुक मर्कटतिन्दुक ये नाम है और यह शीतल
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