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आम्रादिफलवर्गः ।
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तकों हरती कुछ चिकनी मधुर सर होती है. ताडी बहुत नशा करनेवाली होती है ॥ ५३ ॥ और जब खटी होती है तब पित्तकों करनेवाली बात तथा वातदोषकों हरती है. बिल्व, शाण्डिल्य, शैल्यूष, मालूर, श्रीफल, यह बेलफलके नाम हैं ॥ ५४ ॥ और कच्चे बेलफल बिल्वकर्कटी और बिल्वपेशिका कहते हैं. कच्चा बेल काविज, कफवात, अंगशूल, इनकों हरता है ॥ ५५ ॥
(अन्यच्च)
बालं बिल्वफलं ग्राहि दीपनं याचनं कटु | कषायोष्णं लघु स्निग्धं तिक्तं वातकफापहम् ॥ ५६ ॥ पक्कं गुरु त्रिदोषं स्याद्दुर्जरं पूतिमारुतम् । विदाहि विष्टम्भकरं मधुरं वह्निमान्धत् ॥ ५७ ॥ फलेषु परिपकं यद्गुणवत्तदुदाहृतम् । बिल्वादन्यत्र विज्ञेयमामं तद्विगुणाधिकम् ॥ ५८ ॥ द्राक्षाबिल्वशिवादीनां फलं शुष्कं गुणाधिकम् ।
टीका - कच्चा बेलफल काविज, दीपन, पाचन, कटु, कसेला, उष्ण, हलका, चिकना, तिक्त, वातकफकों, हरता है ।। ५६ ।। और पकाहुवा भारी, त्रिदोषकों करनेवाला होता है और सडाहुवा, दुर्गंधि, और वातकों करता है, तथा विदाहकों करनेवाला विष्टम्भी मधुर अग्निमांद्यकों करनेवाला है ।। ५७ ।। फलोंमें पकाहुवा जो होता है वोह गुणयुक्त होता है, परन्तु बेलसें अतिरक्तोंकों जानना चाहिये यह कच्चा गुणमें अधिक होता है ॥ ५८ ॥ दाखवेल आमले इत्यादिकोंके फल सूखेहुवे गुणमें अधिक होते हैं.
अथ कपित्थ (कैथी) नामगुणाः.
कपित्थस्तु दधित्थः स्यात्तथा पुष्पफलः स्मृतः ॥ ५९ ॥ कपिप्रियो दधिफलस्तथा दन्तशठोऽपि च । कपित्थमामं संग्राहि कषायं लघु लेखनम् ॥ ६० ॥
पकं गुरु तृषाहिक्काशमनं वातपित्तजित् । स्यादल्पं तुवरं कण्ठशोधनं ग्राहि दुर्जरम् ॥ ६१ ॥
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