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हरीतक्यादिनिघंटे
अथ फनसनामगुणाः. फनसः कण्टकिफलः पणशोऽतिबृहत्फलः। पणशं शीतलं पक्कं स्निग्धं पित्तानिलापहम् ॥ २४ ॥ तर्पणं बृंहणं स्वादु मांसलं श्लेष्मलं भृशम् । बल्यं शुकप्रदं हन्ति रक्तपित्तक्षतव्रणान् ॥ २५ ॥ आमं तदेव विष्टम्भि वातलं तुवरं गुरु । दाहकन्मधुरं बल्यं कफमेदोविवर्धनम् ॥ २६ ॥ फनसोद्भूतबीजानि वृष्याणि मधुराणि च । गुरूणि बदविट्कानि सृष्टमूत्राणि संवदेत् ॥ २७ ॥ मजा फनसजो वृष्यो वातपित्तकफापहः ।
विशेषात्पनसो वज्यों गुल्मिभिर्मन्दवह्निभिः ॥ २८॥ टीका-फनस, कंटकिफल, पणस, अतिबृहत्कल, येह कटहलके नाम हैं. कटहल शीतल और पकाहुवा चिकना पित्तवातकों हरता है ॥ २४ ॥ तृप्तिकों करनेवाला, पुष्ट, मधुर, मांसकों करनेवाला और अत्यन्त कफकों करनेवालाहै. तथा बलकों करनेवाला और शुक्रकों करनेवालाहै. रक्तपित्त, क्षत, व्रण, इनकों हरताहै ॥ २५॥ वोही कच्चा विष्टम्भ करनेवाला, वातल, कसेला, भारीहै और दाहकों करनेवाला मधुर बलके हित कफमेदकों बढानेवाला है ॥ २६ ॥ कटहलके बीज शुक्रकों उत्पन्न करनेवाले मधुरहै और भारी मलको रोकनेवाला तथा मूत्रकों करनेवाला है ॥ २७ ॥ कटहलकी गिरी शुक्रकों करनेवाली वातपित्तकफकों हरतीहै, विशेषकरके वायगोलावाले और मन्दाग्निवाले कटहलकों न सेवन करै ॥२८॥
अथ क्षुद्रफनसनामगुणाः. लकुचः क्षुद्रपनसो लिकुचो डहुरित्यपि । आमं लकुचमुष्णं च गुरु विष्टम्भकत्तथा ॥ २९ ॥ मधुरं च ताथाम्लं च दोषत्रितयरक्तरुत् । शुक्राग्निनाशनं वापि नेत्रयोरहितं स्मृतम् ॥ ३०॥ सुपक्कं तत्तु मधुरमम्लं चानिलपित्तहृत् ।
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