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हरीतक्यादिनिघंटे आम्रावस्तृषाच्छर्दिवातपित्तहरः सरः।
रुच्यः सूर्यांशुभिः पाकाल्लघुश्च स हि कीर्तितः ॥ १६ ॥ टीका-और रक्खाहुवा वोह परम रुचिकों करनेवाला, बलकों देनेवाला, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, हलका होताहै ॥ ८ ॥ बहुत और शीतल, शीघ्रपाक वाला, वातपित्तको हरता सर होताहै. उस्का निचोडा हुवा रस बलकों देने वाला भारी वात हरता सर होताहै ॥ ९॥ और हृद्य तर्पण और पुष्टिकों करनेवाला कफको बढानेवाला है. और उस्का टुकडा भारी अत्यन्त रुचिकों करनेवाला बहुत कालमें पाक होनेवाला है ॥ १०॥ और मधुर, पुष्ट, बलकों करनेवाला, शीतल, वातकों हरताहै. दूध आमवात पित्तकों करनेवाला रुचिको करनेवाला, पुष्ट, बलको बढानेवाला ॥ ११ ॥ शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, वर्णकों करनेवाला, मधुर, भारी, शीतल होता है. बहुत आमका सेवन मंदामि, विषमज्वर, रक्तके रोग, बद्धगुदोदर और नेत्ररोग, इनकों करताहै इसवास्ते बहुत न सेवन करै. ॥ १२ ॥ यह खट्टे आमके विषयमें कहाहै नकी मधुर आमके विषयमें म धुर परमनेत्रके हित होता है. क्योंकी पहले कहे हुवे मुणोंसें ॥ १३ ॥ आम्रके अतिभक्षणमें पीछेसें सोंठ और पानी पीवे अथवा जीरा और सोंचलनमक मिलाके पीवे ॥ १४॥ पकेहुवे आमके रसकी कपडेपर फैलाकर धृपमें सुखायाहुवा और फिरसें पुट दिये हुवेकों आम्रावर्त ऐसा कहते है ॥ १५॥ और अमवट ऐसा लोकमें कहते है. अम्रवट तृषा वमन वात पित्त इनको हरता सर रुचिकों करनेवाला है और सूर्यकी किरणोंके द्वारा पाक होनेसे वोह हलका कहागयाहै ॥ १६॥
अबबीज तथा नवपल्लवनामगुणाः, आम्रबीज कषायं स्याच्छर्घतीसारनाशनम् । ईषदम्लं च मधुरं तथा हृदयदाहनुत् ॥ १७ ॥
आम्रस्य पल्लवं रुज्यं कफपित्तविनाशनम् । टीका-आमकी गुठली कसेली और वमन अतीसारको हरता कुछ खट्टी मधुर तथा हृद्य दाहकों हरता ॥ १७॥ आमके पत्ते रुचिकों करनेवाले कफपित्तकों हरनेवाले हैं.
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