________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२८
हरीतक्यादिनिघंटे तिक्त, कसेली, शीतल, हलकी, होती है ॥ ३०८ ॥ और पाकमें कडवी तथा मूत्र, कफरोग, कृमि, इनकों हरती है.
अथ मयूरशिखानामगुणाः. मयूराह्वशिखा प्रोक्ता सहस्राहिमधुच्छदा। नीलकंठशिखा लघ्वी पित्तश्लेष्मातिसरजित् ॥ ३०९ ॥
इति हरीतक्यादिनिघंटे गूडच्यादिवर्गः समाप्तः ॥ ३॥ टीका-मयूराव्हशिखा, सहस्रा, अहि, मधुच्छदा, नीलकंठशिखा, यह मोरशिखाके नाम हैं. मोरशिखा हलकी पित्त अतीसारको हरनेवाली है ॥ ३०९॥
इति हरीतक्यादिनिघंटे गडूच्यादिवर्गः समाप्तः ॥
For Private and Personal Use Only