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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः। १२५ देवदालीफलं तिक्तं कमिश्लेष्मविनाशनम् ॥ २९३ ॥ ख्रसनं गुल्मशूलघ्नमर्शोघ्नं वातजित्परम् । टीका--देवदाली जिसको सोनियाभी कहते हैं, यह खाकसके समानफल और लतावाली है. देवदाली, वेणी, कर्कटी, गरागरी, देवताण्डी, वृत्तकोश, तथा जीमूत, यह सोनयाके नाम हैं ॥ २९१ ॥ और दूसरी पीली खरस्पर्शा, विषनी, गरनाशिनी, यह पीली सोनयाके नाम हैं. सोनया रसमें तिक्त, कफ, ववासीर, पांडुरोग, इनकों हरती है ॥ २९२ ॥ और कैलानेवाली, तिक्त है, तथा क्षय, हिचकी, कृमि, ज्वर, इनको हरती है, सोनयाका फल तिक्त, कृमि, कफकों हरता है ॥ २९३ ॥ और दस्तावर, वायगोला, शूल, इनकों हरता है, बवासीरकों हरता है, वात पित्तको हरनेवाला है. अथ जलपिप्पली(पनिसगा)नामगुणाः. जलपिप्पल्यभिहिता शारदी शकुलादनी ॥ २९४ ॥ मत्स्यादनी मत्स्यगन्धा लागलीत्यपि कीर्तिता। जलपिप्पलिका हृद्या चक्षुष्या शुक्रला लघुः ॥ २९५ ॥ संग्राहिणी हिमा रूक्षा रक्तदाहव्रणापहा। कटुपाकरसा रुच्या कषाया वह्निवर्धिनी ॥ २९६ ॥ टीका-जलपिप्पली इस्को पनिसगा ऐसा लोकमें कहते हैं. जलपिप्पली, शा. रदी, शकुलादनी ॥ २९४ ॥ मत्स्यादनी, मत्स्यगन्धा, लाङ्गली, यह जलपिप्पलीके नाम हैं. जलपिप्पली हृद्य, नेत्रहित, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, हलकी, काविज, रूखी, दाह व्रणकों हरती है ॥२९५॥ और पाक रसमें कटु, रुचिकों करनेवाली, कसेली अग्निको बढानेवाली है ॥ २९६ ॥ __ अथ गोजिका(गोभी)नामगुणाः. गोजिह्वा गोजिका गोभी दार्विका खरपर्णिनी। गोजिह्वा वातला शीता ग्राहिणी कफपित्तनुत् ॥ २९७॥ हृद्या प्रमेहकासास्त्रव्रणज्वरहरी लघुः। कोमला तुवरा तिक्ता स्वादुपाकरसा स्मृता ॥ २९८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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