________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२४
हरीतक्यादिनिघंटे कडवी, है और कफ, रक्त, पित्त, श्वास, कास, अरुचि, ज्वर, इनको हरती है २८६ तथा विस्फोट, कुष्ठ, प्रमेह, रक्त, योनिपीडा, कृमी, पाण्डुता, इनकोंभी हरती है.
अथ वंध्या(वाभूखके)नामगुणाः. वन्ध्या कर्कोटकी देवी कन्या योगीश्वरीति च ॥ २८७ ॥ नागारी नक्रदमनी विषकण्टकिनी तथा। वन्ध्या कर्कोटकी लघ्वी कफनुव्रणशोधिनी ॥ २८८ ॥ सर्पदर्पहरी तीक्ष्णा विसर्पविषहारिणी। मार्कण्डिका भ्रूमवल्ली मार्कण्डी मृदुरेचनी ॥ २८९ ॥ मार्कण्डिकाकुष्ठहरी अधिःकायशोधिनी । विषदुर्गन्धकासनी गुल्मोदरविनाशिनी ॥ २९ ॥
वल्लीभूमिप्रसरणशीला। टीका-वन्ध्या, कर्कोटकी, देवी, कन्या, योगीश्वरी ॥२८७॥ नागारी, नकदमनी, विषकंटकिनी यह वांजखकसाके नाम हैं वांजखकसा हलका, कफ हरता, त्रणशोधन ॥ २८८ ॥ सर्पके दर्पको दूर करनेवाला, तीखा, विसर्प, विष, हरता है. यह लता भूमीपर फैलनेवाली होती है. मार्कडिका, भूमवल्ली, मार्कडी, मृदुरेचनी, यहभी खकसाके नाम हैं ।। २८९ ॥ खकसा कुष्ठ हरता ऊपर और नीचेस शरीरको शोधन करनेवाला है और विष, दुर्गध, कास, इनको हरता और वायगोला, उदररोग, इनकोंभी हरता है ॥ २९० ॥
अथ देवदाली(सोनैया)नामगुणाः.
(इयमपि खखसावत्फला व्रततिः) देवदाली तु वेणी स्यात्कर्कटी च गरागरी । देवदाली वृत्तकोशस्तथा जीमूत इत्यपि ॥ २९१ ॥ पीतापरा खरस्पर्शा विषघ्नी गरनाशिनी । देवदाली रसे तिक्ता कफार्शःशोफपाण्डुताः ॥ २९२ ॥ नाशयेद्दामनी तिता क्षयहिकाहमिज्वरान् ।
For Private and Personal Use Only