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हरीतक्यादिनिघंटे दुग्धिका स्वादुपर्णी स्यात्क्षीरा विक्षीरणी तथा । दुग्धिकोष्णा गुरू रूक्षा वातला गर्भकारिणी ॥ २७५ ॥ स्वादुक्षीरा कटुस्तिक्ता सृष्टमूत्रमलापहा ।
स्वादुर्विष्टम्भिनी वृष्या कफकुष्ठकमिप्रणुत् ॥ २७६ ॥ टीका-अलम्बुषा, स्वरखक, मेदोगला, यह हाउवेरके नाम हैं. हाउवेर हलका, मधुर, कृमि, पित्त, कफ़ इनकों हरता है ॥ २७४ ॥ दुग्धिका, स्वादुपर्णी, क्षीरा, विक्षीरणी, यह दुग्धीके नाम हैं. दुग्धी गरम, भारी, रूखी, वातकों करनेवाली और गर्भकों करनेवाली ॥ २७५ ॥ और दुग्धवाली, कडवी, तिक्त, मूत्रकों करनेवाली, मलहरती है मधुर, विष्टम्भको करनेवाली, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, और कफ, कुष्ठ, कृमि, इनको हरती है ॥ २७६ ॥
अथ भुइआंवरा तथा वरंभी. भूम्यामलकिका प्रोक्ता शिवा तामलकीति च । बहुपत्रा बहुफला बहुवीर्या जटापि च ॥ २७७॥ भूधात्री वातकत्तिक्ता कषाया मधुरा हिमा। पिपासाकासपित्तास्त्रकफकण्डूक्षतापहा ॥ २७८ ॥ ब्राह्मी कपोतवङ्का च शिवमल्ली सरस्वती। मण्डूकपर्णी माण्डूकी त्वाष्ट्री दिव्या महौषधी ॥ २७९ ॥ ब्राह्मी हिमा सरा तिक्ता लघुर्मेध्या च शीतला। कषाया मधुरा स्वादुपाकायुष्या रसायनी ॥ २८० ॥ स्वर्या स्मृतिप्रदा कुष्टपाण्डूमेहास्त्रकासजित् ।
विषशोथज्वरहरी तहन्मण्डूकपर्णिनी ॥ २८१ ॥ टीका-भूम्यामलकि, शिवा, तामलकी, बहुपत्रा, बहुफला, बहुवीर्या, जटा, यह भुईआंवलेके नाम हैं ॥२७७॥ भुईआंवला वातकों करनेवाला, तिक्त, कसेला, मधुर, शीतल है. और प्यास, कास, रक्तपित्त, कफ, खुजली, क्षत इनकों हरता है ॥२७८॥ ब्राह्मी, कपोतवंका, सोमवल्ली, सरस्वती, मण्डूकपर्णी, मण्डूकी, त्वाष्ट्री, दिव्या, महोषधी यह ब्राह्मी और मण्डूकपर्णीके नाम हैं ॥ २७९ ॥ ब्राह्मी शीतल, सर,
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