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गडूच्यादिवर्गः।
अथ शङ्खपुष्पीनामगुणाः. शङ्खपुष्पी तु शङ्खाह्वा माङ्गल्यकुसुमापि च ॥ २६९॥ शङ्खपुष्पी सरा मेध्या वृष्या मानसरोगहृत् । रसायनी कषायोष्णा स्मृतिकान्तिबलाग्निदा ॥ २७० ॥
दोषापस्मारभूतादि कुष्ठकमिविषप्रणुत् । टीका-शंखपुष्पी, शंखाव्हा, मागल्यकुसुमा, यह शंखपुष्पीके नाम हैं ॥२६९॥ शंखपुष्पी मल, वातको अनुलोम करनेवाली, कान्तिको बढानेवाली, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, मानसरोगकों हरती है. और रसायन, कसेली, गरम, स्मृति, कान्ति, बल, अग्नि इनकों देनेवाली ॥ २७० ॥ और मृगी, भूत, कुष्ट, कृमि, विष, इनकों हरती है.
अथ अर्कपुष्पीतक्षलज्जालुनामगुणाः. अर्कपुष्पी क्रूरकर्मा पयस्या जलकामुका ॥ २७१ ॥ अर्कपुष्पी कमिश्लेष्ममेहपित्तविकारजित् । लजालुः स्यात् शमीपत्रा समझा जलकारिका ॥ २७२ ॥ रक्तपादी नमस्कारी नाना खदिरकेत्यपि ।
लज्जालुः शीतला तिक्ता कषाया कफपित्तजित् ॥ २७३॥ टीका-अर्कपुष्पी, क्रूरकर्मा, पयस्या, जलकामुका, यह अर्कपुष्पीके नाम हैं. ॥२७॥ अर्कपुष्पी कृमि, कफ, प्रमेह, पित्तरोग, इनकों हरती है. लाजालू, शमीपत्री, समंगा, जलकारिका, रक्तपादी, नमस्कारी, खदिरका यह लजालूके नाम हैं ॥ २७२ ॥ लाजालू शीतल, तिक्त, कसेला होताहै और कफ, पित्तको हरनेवाला, तथा रक्त, पित्त, अतीसार, योनिरोग, इनको हरता है ॥ २७३ ॥
अलम्बुषा, तथा दूधी नामगुणाः. रक्तपित्तमतीसारं योनिरोगान् विनाशयेत् । अलम्बुषा स्वरत्वक् च तथा मेदोगला स्मृता । अलम्बुषा लघुः स्वादुः कमिपित्तकफापहा ॥ २७१ ॥
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