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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः। ११७ नीचे करनेवाली, भारी, मधुर, तिक्त, रक्तपित्त, प्रमेह, इनकों हरती है, और त्रिदोष, तृषा, हृद्रोग, खुजली, कुष्ठ, ज्वर, इनकोंभी हरती है ॥ २४६ ॥ अथ काकमाची(कवैया)नामगुणाः. काकमाची ध्वाङ्गमाची काकाहा चैव वायसी । काकमाची त्रिदोषनी स्निग्धोष्णा स्वरशुक्रदा ॥ २४७ ॥ तिक्ता रसायनी शोथकुष्ठाझैज्वरमेहजित् । - कटुर्नेत्रहिता हिक्काच्छर्दिहृद्रोगनाशिनी ॥ २४८॥ ___टीकाः-काकमाची, ध्वांक्षमाची, काकाहा, वायसी, यह किमाचके नाम हैं. किमाच त्रिदोषहारक, चिकनी, उष्ण, स्वर, शुक्रकों करनेवाली, ॥ २४७॥ तिक्त, रसायन, शोथ, कुष्ठ, बवासीर, ज्वर, प्रमेह, इनको हरनेवाली है, कडवी, नेत्रके हित है, हुचकी, वमन, हृदयरोग इनको हरनेवाली है ॥ २४८ ॥ अथ काकनासा(कौआढोढी)नामगुणाः. काकनासा तु काकाङ्गी काकतुण्डफला च सा। काकनासा कषायोष्णा कटुका रसपाकयोः ॥ २४९ ॥ कफनी वामनी तिक्ता शोथार्श:श्वित्रकुष्ठहत् । टीकाः-काकनासा, काकाङ्गी, काकतुंडफला, यह कौवाढोढीके नाम हैं. कौवाढोढी कसेली, रसपाकमें कडवी होती है ॥ २४९ ॥ और कफकों हरती है, वमन करनेवाली, तिक्त, सूजन, बवासीर, श्वित्र, कुष्ठ, इनकों हरती है. __ अथ काकजंघा(मसी)नामगुणाः. काकजंघा नदीकांता काकतिक्ता सुलोमशा ॥ २५० ॥ पारावतपदी दासी काका चापि प्रकीर्तिता । काकजंघा हिमा तिक्ता कषाया कफपित्तजित् ॥ २५१ ॥ निहन्ति ज्वरपित्तास्त्रज्वरकण्डूविषकमीन् । टीका-काकजंघा इस्को लोकमें मसी ऐसी कहते हैं. काकजंघा, नदीकांता, काकतिक्ता, सुलोमशा ॥ २५०॥ पारावतपदी, दासी, काका, यह मसीके नाम हैं. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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