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गडूच्यादिवर्गः।
११७ नीचे करनेवाली, भारी, मधुर, तिक्त, रक्तपित्त, प्रमेह, इनकों हरती है, और त्रिदोष, तृषा, हृद्रोग, खुजली, कुष्ठ, ज्वर, इनकोंभी हरती है ॥ २४६ ॥
अथ काकमाची(कवैया)नामगुणाः. काकमाची ध्वाङ्गमाची काकाहा चैव वायसी । काकमाची त्रिदोषनी स्निग्धोष्णा स्वरशुक्रदा ॥ २४७ ॥
तिक्ता रसायनी शोथकुष्ठाझैज्वरमेहजित् । - कटुर्नेत्रहिता हिक्काच्छर्दिहृद्रोगनाशिनी ॥ २४८॥ ___टीकाः-काकमाची, ध्वांक्षमाची, काकाहा, वायसी, यह किमाचके नाम हैं. किमाच त्रिदोषहारक, चिकनी, उष्ण, स्वर, शुक्रकों करनेवाली, ॥ २४७॥ तिक्त, रसायन, शोथ, कुष्ठ, बवासीर, ज्वर, प्रमेह, इनको हरनेवाली है, कडवी, नेत्रके हित है, हुचकी, वमन, हृदयरोग इनको हरनेवाली है ॥ २४८ ॥
अथ काकनासा(कौआढोढी)नामगुणाः. काकनासा तु काकाङ्गी काकतुण्डफला च सा। काकनासा कषायोष्णा कटुका रसपाकयोः ॥ २४९ ॥
कफनी वामनी तिक्ता शोथार्श:श्वित्रकुष्ठहत् । टीकाः-काकनासा, काकाङ्गी, काकतुंडफला, यह कौवाढोढीके नाम हैं. कौवाढोढी कसेली, रसपाकमें कडवी होती है ॥ २४९ ॥ और कफकों हरती है, वमन करनेवाली, तिक्त, सूजन, बवासीर, श्वित्र, कुष्ठ, इनकों हरती है.
__ अथ काकजंघा(मसी)नामगुणाः. काकजंघा नदीकांता काकतिक्ता सुलोमशा ॥ २५० ॥ पारावतपदी दासी काका चापि प्रकीर्तिता । काकजंघा हिमा तिक्ता कषाया कफपित्तजित् ॥ २५१ ॥
निहन्ति ज्वरपित्तास्त्रज्वरकण्डूविषकमीन् । टीका-काकजंघा इस्को लोकमें मसी ऐसी कहते हैं. काकजंघा, नदीकांता, काकतिक्ता, सुलोमशा ॥ २५०॥ पारावतपदी, दासी, काका, यह मसीके नाम हैं.
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