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हरीतक्यादिनिघंटे प्रत्यक्पर्णी केशपर्णी कथिता कपिपिप्पली । अपामार्गोऽरुणो वातविष्टम्भी कफत् हिमः ॥ २२१ ॥ रूक्षः पूर्वगुणैन्यूनः कथितो गुणवेदिभिः । अपामार्गफलं स्वादु रसे पाके च दुर्जरम् ॥ २२२ ॥
विष्टम्भि वातलं रूक्षं रक्तपित्तप्रसादनम् । टीका-दूसरा लाल वशिर, वृत्तफल, अपामार्ग ॥ २२० ॥ प्रत्यकपर्णी, केशपर्णी, कपिपिप्पली, यह लाल चिचेरेके नाम हैं. लाल चिचेरा अरुण वातकों वि. टंभ करनेवाला, कफकों करनेवाला, शीतल ॥ २२१ ॥ रूक्ष, और पहलेके गुणोंसें हीनगुणके जाननेवालोंने ऐसा कहा है. चिचेरेका फल रसमें मधुर, और पाकमेंभी मधुर, विदग्ध ॥ २२२ ॥ विष्टंभकों करनेवाला, वातकों करनेवाला, रूखा, रक्तपित्तकों अच्छा करनेवाला होता है.
अथ कोकिलाक्ष(तालमखाना)नामगुणाः. कोकिलाक्षस्तु काकेक्षुरिक्षुरः क्षुरकः क्षुरः ॥ २२३ ॥ इक्षुः काण्डेक्षुरप्युक्त इक्षुगन्धेझुवालिका । क्षुरकः शीतलो वृष्यः स्वादम्लः पित्तलस्तथा ॥ २२४ ॥
तिक्तो वातामशोथाश्मतृष्णादृष्ट्यनिलास्त्रजित् । टीका-कोकिलाक्ष, काकेक्षु, इक्षुर, क्षुरक, क्षुर ॥ २२३ ॥ इक्षु, काण्डेक्षु, इक्षुगन्धा, इक्षुवालिका, यह तालमखानेके नाम हैं. तालमखाना शीतल, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, मधुर, अम्लपित्तकों उत्पन्न करनेवाला ॥ २२४ ॥ तिक्त, आमवात, पथरी, शोथ तृषा, दृष्टिरोग, वातरक्त, इनको हरनेवाला है.
अथ ग्रंथि(हडसंघारी)नामगुणाः. ग्रन्थिमानस्थिसंहारी वज्राङ्गी चास्थिशृङ्खला। अस्थिसंहारकः प्रोक्तो वातश्लेष्महरोऽस्थियुक् ॥ २२५ ॥ उष्णः सरः कृमिघ्नश्च दुर्नामनोऽक्षिरोगजित् । रूक्षः स्वादुर्लघुर्वष्यः पाचनः पित्तलः स्मृतः ॥ २२६ ॥
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