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गडूच्यादिवर्गः। श्रवणाहा मुण्डतिका तथा श्रवणशीर्षका ॥ २१४ ॥ महाश्रवणकान्या तु सा स्मृता भूकदम्बिका । कदम्बपुष्पिका च स्यादव्यथातितपस्विनी ॥ २१५॥ मुण्डतिका कटुः पाके वीर्योष्णा मधुरा लघुः । मेध्या गण्डापची कृच्छकमियोन्यतिपाण्डुनुत् ॥ २१९॥ श्लीपदारुच्यपस्मारठलीहमेदोगुदातिहत् ।
महामुण्डी च तत्तुल्या गुणैरुक्ता महर्षिभिः ॥ २१७ ॥ टीका-मुण्डी, भिक्षुश्रावणी, तपोधना, श्रवणाहा, मुंडतिका, श्रवणशीर्षका, यह मुण्डीके नाम हैं ॥ २१४ ॥ वडीमुंडी, महाश्रावणिका, भूकदम्बिका, कदम्बपुष्पिका, अव्यथा, अतितपस्विनी ॥२१५॥ मुण्डी पाकमें कडवी, वीर्यमें उष्ण, मधुर हलकी, होती है, कान्तीकों देनेवाली, गण्डमाल, अपची, मूत्रकृच्छ्र, कृमि, योनिपीडा, पाण्डुरोग, इनको हरनेवाली है ॥ २१६ ॥ और श्लीपद, अरुचि, मिरगी, प्लीह, मेद, गुदाकी पीडा, इनको हरनेवाली है. बडी मुंडी गुणोंमें उसीके समान महर्षियोंनें कही है ॥ २१७ ॥
अथ अपामार्ग(चिरचिरा)नामगुणाः. अपामार्गस्तु शिखरी ह्यधःशल्यो मयूरकः। मर्कटो दुर्ग्रहा चापि किणिही खरमञ्जरी ॥ २१८॥ अपामार्गः सरस्तीक्ष्णो दीपनस्तिक्तकः कटुः। पाचनो रोचनश्छर्दिकफमेदोऽनिलापहः ॥२१९॥
निहन्ति हृद्रुजाध्मार्शःकण्डूशूलोदरापची। टीका-अपामार्ग, शिखरी, अधःशल्या, मयूरक, मर्कटी, दुर्ग्रहा, किणिही, खरमंजरी, ये चिचेंडेके नाम हैं ॥ २१८ ॥ चिचेंडा दस्तावर, तीक्ष्ण, उष्ण, दीपन, तिक्त, कटु, पाचन, रोचन, कफ, मेद, वमन, वात, इनको हरता है ॥ २१९ ॥ हृदयकी पीडा आध्मान, बवासीर, खुजली, शूल उदररोग, अपची, इनकों हरता है.
अथ रक्तापामार्ग(चिरचिरा)नामगुणाः. रक्तोन्यो वशिरो वृत्तफलो धामार्गवोऽपि च ॥ २२० ॥
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