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, अम्बष्ठा, अम्बाह पाठाके नाम हैं। ल, ज्वर, वमन,
गडूच्यादिवर्गः।
१०७ पाठोष्णा कटुका तीक्ष्णा वातश्लेष्महरी लघुः। हन्ति शूलज्वरछर्दिकुष्ठातीसारदुजः ॥ १९१ ॥
दाहकण्डूविषश्वासकमिगुल्मगरव्रणान् ।। टीका-पाठा, अम्बष्ठा, अम्बष्ठकी, प्राचीना, पापचेलिका, एकाष्ठीला, रसा, पाठिका, वरतिक्तका ॥ १९० ॥ येह पाठाके नाम हैं, पाठा उष्ण, कडवी, तीक्ष्ण, वात कफको हरनेवाली, हलकी, होती है, और शूल, ज्वर, वमन, कुष्ठ, अतीसार, हृदयकी पीडा ॥१९॥ दाह, खुजली, विष, श्वास, कृमि, वायगोला, व्रण, इनकों हरती है.
अथ श्वेतनिशोतनामगुणाः. श्वेता त्रिवृता भण्डी स्यानिवृता त्रिपुटापि च ॥ १९२ ॥ सर्वानुभूतिः सरला निशोता रेचनीति च । श्वेता तृवृद्रेचनी स्यात्स्वादुरुष्णा समीरहृत् ॥ १९३ ॥
रूक्षा पित्तज्वरश्लेष्मपित्तशोथोदरापहा । टीका---श्वेता, त्रिता, भण्डी, त्रिपुटा ॥ १९२ ॥ सर्वानुभूति, सरला, निशांता, रेचनी, येह मुफेद निशोतके नाम हैं. मुफेद निशोत दस्तावर होती है, मधुर, उष्ण, वातकी नाशक ॥ १९३ ॥ रूक्ष, पित्त, ज्वर, श्लेष्म, शोथ, उदर, इनको हरती है.
अथ श्यामनिशोतनामगुणाः. त्रिवृच्छ्यामार्धचन्द्रा च पालिन्दी च सुषेणिका ॥ १९४॥ मसूरविदला कोलकैषिका कालमेषिका। श्यामा त्रिवृत् ततो हीनगुणा तीव्र विरेचनी ॥ १९५॥
मूर्छादाहमदभ्रान्तिकण्ठोत्कर्षणकारिणी । टीका-त्रिवृत्, श्यामा, अर्धचंद्रा, पालिन्दी, सुषेणिका ॥१९४॥ ममरविदला, कोलकैपिका, कालमेषिका, यह काली निशोतके नाम हैं. काली. निशोत उस्से हीनगुणवाली और अधिक दस्तावर होती है ॥ १९५ ॥ तथा मूर्छा, दाह, मद, भ्रान्ति, कंठका उत्कर्षण करनेवाली होती है.
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