________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ये त्वामर्चयन्ति तेभ्य इति शेषः // 8 // 10 // 11 // 12 // जनं भक्ताजनं माम् // 13 // 14 // 15 // चण्डिके सततं ये त्वामयन्तीह भक्तितः / रूपं देहि // 6 // देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि ! परं सुखम् / रूपं देहि // 10 // विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः / रूपं देहि० // 11 // विधेहि देवि ! कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् / रूपं देहि // 12 // विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु / रूपं देहि // 13 // प्रचण्डदेत्यदर्पघ्ने चण्डिके ! प्रणताय मे / रूपं देहि० // 14 // चतुर्भुजे चतुर्वत्रसंस्तुते परमेश्वरि ! / रूपं देहि // 15 // प्र०। चण्डिके सततमित्यत्रापि तथैव ये त्वामर्चयन्ति तेभ्य इति शेषः // 8 // देहि सौभाग्यमिति अर्थान्मह्यम्॥१०॥ विधेहीति। उच्चकैः अतिशयेनोच्चं बलं मम विधेहि // 11 // 12 // विद्यावन्तमिति / ब्रह्मविद्यावन्तं जनं स्वभक्तजनं कुरु अथच रूपं देहीत्यर्थः // 13 // 14 // 15 // For Private and Personal Use Only