________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रक्तवीजस्य बधो यस्याः सकाशात सेति विग्रहः // 5 // 6 // 7 // 8 // रक्तबीजबधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ! / रूपं देहि० // 5 // अचिन्त्यरूपचरिते ! सर्वशत्रुविनाशिनि ! / रूपं देहि० // 6 // नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके ! प्रणताय मे / रूपं देहि० // 7 // स्तुवयो भक्तिपूर्व त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ! / रूपं देहि // 8 // प्र० / रत्नबीजेति / रक्तबीजस्य बधः कर्त्तव्यतयास्ति यस्याः सा अर्शप्राद्यजन्तं रक्तबीजबधकर्वीत्यर्थः। रक्त बीजस्य बधो यस्याः सकाशादिति वा, अत्र शुम्भासुरति श्लोकपाठोपपाठः प्राचीनरव्याख्यानात् प्राचीनपुस्तकेष्व पाठाच // 5 // अचिन्त्येति / यतो वाचो निवर्तन्तेति श्रुतः यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन् सो अङ्गवेद यदि वा न वेदेति श्रुतेः // 6 // नतेभ्य इति / सदासर्वदा भक्त्या नतेभ्यः प्रणतेभ्यो मे प्रणताय च रूपं देहीत्यन्वयः // 7 // एवं स्तुवा इत्यवापि // 8 // For Private and Personal Use Only