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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलजादयो दुष्टदेवता जातिभेदाः // 45 // 46 // 40 // 48 // जपदिति / अत्र कवचं पुरा कत्वासप्तशती जपेदिति विधौ कवेति सप्तशत्वङ्गत्वस्यानुवादः कवचसमाख्यया वचनान्तरश्च कवचस्य चण्डीपाठाङ्गत्वसिद्दः. भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चौपदेशिकाः। सहजाः कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा // 45 // अन्तरिक्षचराघोरा डाकिन्यश्च महाबलाः / ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः // 46 // ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः। नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते // 47 // मनोन्नतिर्भवेद् राजस्तेजोवृद्धिकरं परम्। यशसा बईते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले // 48 // जपत्सप्तशती चण्डौं कृत्वा तु कवचं पुरा। यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्॥४६ प्र० / कुलजादयो दुष्टदेवता जाति भेदा: 'औपदेशिकाः' उपदेशेन तन्मात्रेण ये सियन्ति ते क्षुद्रदेवताभेदाः / राज्ञः सकाशादित्यर्थः // 45 // // 46 // 47 // 48 // अधुना सप्तशत्यत्वं कवचस्य विधत्ते जपदिति 'पुरा' प्रथमतः / धत्त इति अनन्तनागो यावद्भूमण्डलं धत्ते धारयति तावदित्यर्थः // 4 // For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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