________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 20 // 21 // 22 // 23 // नलिकां कण्ठनालम् // 24 // 25 // विमेवा च ध्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके। शशिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोहरवासिनी // 20 // कपोलो कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शङ्करी / नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका // 21 // अधरे चाऽमृतकला जिह्वायान्तु सरस्वती। दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठमध्ये तु चण्डिका // 22 // घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके। कामाक्षोचिवुकं रक्षेद्वाचं मे सर्वमङ्गला // 23 // ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी। नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूवरी॥२४॥ खड्गधारिण्युभी स्कन्धौ बाइ मे वचधारिणी। हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च // 25 // प्र०। 'नासिके' नासिकापुटे इत्यर्थः, उत्तरत्रनासिकाशब्देन नासिकादण्ड इति॥२०॥२१॥ 'अधरे' अधरोष्ठ इत्यर्थः // 22 // कण्ठस्य बहिर्भागो बहिःकण्ठः। मलिकां कण्ठनालम् // 24 // स्कन्धमारभ्य कूर्परपर्यन्तो भागो बाहुस्तदारभ्याङ्गलिपर्यन्तो हस्तः // 25 // For Private and Personal Use Only