________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुर्वत्तानामिति 'वादी मूकति रति क्षितिपतिर्वेश्वानरः शोतति क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः दुर्वृत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम्। रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेव नाशनम् // 18 // सर्व ममैतन्माहात्मा मम सन्निधिकारकम्। पशुपुष्यार्घधूपैश्च गन्धदीपैस्तथोत्तमैः // 16 // विप्राणां भोजनौंमैः प्रोक्षणीयैरहर्निशम्। अन्यैश्च विविधैर्भागैः प्रदानैवत्सरेण या // 20 // प्रीति क्रियते सास्मिन् सकृत् सुचरिते श्रुते। श्रुतं हरति पापानि तथारोग्यं प्रयच्छति // 21 // रक्षां करोति भूतेभ्यो जन्मनां कीर्तनं मम / युद्धेषु चरितं यन्मे दुष्टदैत्यनिवर्हणम् // 22 // बचती'त्यादिश्लोकप्रसिद्धफलप्रद इत्यर्थः // 18 // 18 // प्रोक्षणीयः पञ्चामृतपतीरादिमहाभिषेकः // 20 // // 21 // 22 // For Private and Personal Use Only