________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयेभ्य इति दुर्गे इति च वाक्यभेदेन देवौति संबुद्धिहयम् // 23 // 24 // 25 // अनः सुप्तानिव प्राणवाननः, सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि ! दुर्गे! देवि! नमोऽस्तु ते // 23 // एतत्ते वदनं सौम्य लोचनवयभूषितम् / पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि ! नमोऽस्तु ते॥ 24 // ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। विशूलं पातुनो भौतेर्भद्रकालि ! नमोऽस्तु ते॥२५॥ हिनस्ति दैत्यतेजांसि खनेनापूर्य या जगत् / सा घण्टा पातु नो देवि ! पापेभ्योनः सुतानिव // 26 // असुरामृगवसापश्चर्चितस्ते करोउज्वलः। शुभाय खड्नो भवतु चण्डिके ! त्वां नतावयम् // 27 // रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभौष्टान् / वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिताद्याश्रयतां प्रयान्ति // 28 // माटपरोप्यनः शब्दोऽस्तौति कश्चित् // 26 // 27 // 28 // For Private and Personal Use Only