________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ मन्त्र व्याख्या। देव्येति वह्निपुरोगमा: अग्निरग्रेप्रथमो देवानामिति श्रुतेः // 1 // 2 // 3 // कषिरुवाच। देव्या हते तत्र महासुरेन्द्र सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम् / कात्यायनी तुष्टबुरिष्टलम्भाद् विकाशिवक्त्रास्तु विकाशिताशाः // 1 // देवि ! प्रपन्नाति हरे ! प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य / प्रसीद विश्वेश्वरि ! पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि ! चराचरस्य // 2 // आधारभूता जगतस्त्वमेका महीखरूपेण यतःस्थितासि / अपां स्वरूपस्थितया त्वयैतदाप्याय्यते कृत्स्नमलंध्यवीर्ये // 3 // त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवौय्या विश्वस्य वीज परमासि माया। संमोहितं देवि ! समस्तमेतत्त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः // 4 // नारायणीमुक्ताख्यं स्तवमाह, देवीति संमोहितं त्वयैवेति शेषः For Private and Personal Use Only