________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 52 // मच्छस्त्रपातेति / रक्तविन्दोः रक्तवीजादिति पञ्चमी मच्छस्त्रपातेन रतावीजतः सम्भूतान् रक्तविन्दो: तान् विषमान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राह सत्वरा। उवाच कालौं चामुण्डे ! विस्तीर्ण वदनं कुरु // 52 // मच्छस्वपातसम्भूतान् रक्तविन्दून् महासुरान् / रक्तविन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त गानेन वेगिना // 53 // भक्षयन्ती चर रगो तदुत्पन्नान् महासुरान् / एवमेष क्षयं दैत्यः क्षोणरतो गमिष्यति // 54 // भक्ष्यमाणारखया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे। इत्युत्ता तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम् // 55 // मुखेन काली जगृह रक्तवीजस्य शोणितम् / ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम् // 56 // न चास्या वेदनाञ्चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि / तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम् // 57 // यतस्ततस्तहत ण चामुण्डा संप्रतीच्छति / मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः // 58 // एकवानादेककविन्दुसम्बधिनोऽप्यनेकानिस्यर्थः // 53 // 54 // 55 // 56 // 5 // प्रतीच्छति ग्रहाति // 5 // For Private and Personal Use Only