________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 15 // 16 // शङ्खचक्रेति शाङ्गपदेन बाणा अप्य पलक्ष्यन्ते बाहुभिर्गरुडारूढ़ा शङ्खचक्रगदासिनी शाङ्गबाबधरायाता वैष्णवीरूपधारिणीति वामनपुराणात् अतएव षड्भजेयं, केचित्तु अभ्युपाबाहुमूलं स्यादिति माहेश्वरी वृषारुढ़ा त्रिशूलवरधारिणी। महाहिबलया प्राप्ता चन्द्ररेखाविभूषणा // 15 // कौमारौ शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना। योडुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी // 16 // तथैव वैषणवी शक्तिर्गमड़ोपरिसंस्थिता / शङ्खचक्रगदाशाखड़गहस्ताभ्युपाययौ // 17 // यज्ञवाराहमतुलं रूपं या बिभ्रती हरेः / शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम् // 18 // नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृश वपुः / प्राप्ता तब सटाक्षेप क्षिप्तनक्षत्रसंहतिः // 16 // कोशोऽस्ति तेन कक्षे खड्नोऽर्थात् पृष्ठे इषुधिरिति चतुर्भुजत्वमेव परिष्क र्वन्ति तत् कोशसत्व एव विश्वसनीयम् // 17 // 18 // 18 // For Private and Personal Use Only