________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. // 7 // उपरहयत् पागमशास्त्रत्वादडऽभावः // 8 ॥'घण्टानां' तबादानी कम्मणि षष्ठी। जिग्ये आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभौषणम् / ज्याखनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम् // 7 // ततः सिंहो महानादमतीव कृतवान्नृप / / घण्टाखनेन तन्नादमम्बिका चोपढेहयत् // 8 // धनुासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा / निनादैभीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना // 6 // तन्निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुदिशम् / देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः // 10 // एतस्मिन्नरे भूप ! विनाशाय सुरद्विषाम्। भवायामरसिंहानामतिबीयबलान्विताः॥११॥ ब्रह्मेश गुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः। शरीरेभ्यो विनिष्कम्य तद्रूपैश्चण्डिका ययुः // 12 // यस्य देवस्य यट्रपं यथा भूषणवाहनम् / तहदेव हि तच्छक्तिरमुरान् योडुमाययौ 13 हंस युक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः / आयाता ब्रह्मणः शक्तिब्रह्माणी साभिधीयते 14 जितवती // 8 // सरोषैः कुपितैः स इति सिंहपर भिवपदं वा // 10 // 11 // 12 // 13 // 14 // For Private and Personal Use Only