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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दामिका नादब्रह्म, ऋग्यजुषामिति समासान्तोऽज्नेह पनित्यत्वात्, उहीथः पञ्चभक्तिकस्य सानो द्वितीया भक्तिरुत्तमत्वात् मेकैव निर्दिष्टा, रम्यपदपाठो देवतापदस्तौभैः कालपूरणं, भवभावनाय उत्पत्तिसत्यार्थ, वार्ता जीवनस्थितिक्तत्यम्, पार्तिहन्त्री अनुग्रहकत्यवती तेन पञ्चकत्यपरायणेति यावत् // 8 // शब्दात्मिका सुविमलय॑जुषां निधानमुद्गीथरम्यपदपाठवताञ्च साम्नाम्। देवीवयी भगवती भवभावनाय वार्तासि सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री // 6 // मेधासि देवि ! विदिताखिलशास्त्रसारा दुर्गासि दुर्गभवसागरनौरसङ्गा। श्री कैटभारिहृदयैककृताधिवासा गौरी त्वमेव शशिमौलिकृतप्रतिष्ठा // 10 // ईषत्महासममलं परिपूर्णचन्द्रविम्बानुकारिकनकोत्तमकान्तिकान्तम् / अत्यद्भुतं प्रहृतमात्तरुषा तथापि वक्ता विलोक्य सहसा महिषासुरेण // 11 // नौरसना सङ्गाभावस्यैव तारकत्वात्, सङ्गः सर्वात्मना त्याज्य इति वचनात् // 10 // अत्यद्भुतमिति ईदृशवक्त्रालोकनारिषड्गध्वंसपूर्वकचित्तशड्या परतत्वावबोधस्य सद्योऽवश्यम्भावादिति भावः / तेन पापाधिक्य ध्वनितम् // 11 // For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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