________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 37 // 38 // तया देव्या या मधुपानेन परिणता राजसी लक्ष्मीस्तया निपातित इत्यर्थः। शिरश्छेदोत्तरमपि ऋषिरुवाच / एवमुक्ता समुत्पत्य सारूढ़ा तं महासुरम् / पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताड़यत् // 37 // ततः सोऽपि पदाक्रान्तस्तया निजमुखात्ततः। अईनिष्कान्त एवाति देव्या वीर्येण संवृतः // 38 // अईनिष्कान्त एवासौ युध्यमानो महासुरः / तया महासिना देव्या शिरश्छित्वा निपातितः // 36 // ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत् / प्रहर्षञ्च परं जग्म : सकला देवतागणाः // 40 // तुष्टुवुस्तां सुरा देवी सह दिव्यमहर्षिभिः। जगुर्गन्धर्वपतयो नऋतुश्चाप्सरो गणाः // 41 // इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्मा महिषासुरबधो नाम टतीयोऽध्यायः // 3 // युद्धशेषः पुराणान्तरेषु द्रष्टव्यः // 38 // ननाश पलायितम् // 40 // अत्र ऋषियं यथा स्थानमपेक्षितमेव देव्युक्तिरनपेक्षितवास्तीति दिक् // 41 // इति श्रीगुप्तवत्यां तृतीयोऽध्यायः // 3 // For Private and Personal Use Only