________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टो. 42 26 // 30 // सम्प्रताप्राप्यसंस्थितामित्य स्योत्तरमष्टाशीति सहस्रेण सखीभिः परिवारितामित्यई अभ्यधावत तं शब्दमशेषैरसुरैर्वृतः। स ददर्श ततो देवौं व्याप्तलोकत्रयां विषा // 36 // पादाक्रान्त्या नतभुवं किरीटोल्लिखिताम्बराम्। क्षोभिताशेषपाताला धनुानिःस्वनेन ताम् // 37 // दिशो भुजसहस्रेण समन्ताद व्याप्य संस्थिताम् / ततः प्रववृते युद्धं तया देव्यासुरहिषाम् // 38 // शस्त्रास्वैर्बहुधा मुक्तैरादीपितदिगन्तरम्। महिषासुरसेनानौश्चिक्षुराख्यो महासुरः // 38 // युयुधे चामरश्चान्यैश्चतुरङ्गबलान्वितः / रथानामयुतैः षड्भिरूदग्राख्यो महासुरः // 40 // अयुध्यतायुतानाञ्च सहस्रेण महाहनुः / पञ्चाशद्भिश्च नियुतैरसिलोमा महासुरः // 41 // अयुतानां शतैः षड्भिर्वाष्कलो युयुधे रणे। गजवाजिसहस्रौधैरनेकैः परिवारितः // 42 // मधिकम् // 38 // 38 // 4. // 42 // 42 // For Private and Personal Use Only