________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूढ़ि रायते न ते // 1 // श्रीचण्डीस्तवमन्त्राणां विभागः सप्तभिः शतैः / कात्यायन्यादितन्त्रेषु विषु त्रेधा प्रकीर्तितः // 2 // गुप्तवत्या प्रकारास्ते न्यायैः संशोध्यदर्शिताः / तत्रयं भास्करणेह शतश्लोक्या टु.टी. निबध्यते // 3 // मार्कण्डेय उवाचेति मन्त्र: प्राथमिको मतः सावर्खाद्या मुनिवराश्रमान्ता: श्लोकका 7 दश // 4 // सोऽचिन्तयत्तदा तत्रेत्यई श्लोकात्मको मनुः // मत्पूर्वरित्युपक्रम्य सप्तश्लोकानृपान्तिमाः // 5 // अथ वैश्यः समाध्याद्याः संस्थितान्तास्ततस्त्रयः / किं नु तेषां कथं ते किं इत्यईश्लोकको मनू // 6 // राजोवाच ततो येस्तेष्वित्यई लोकमन्त्रको // वैश्योक्तिरेवमित्याद्या बन्धुष्वन्तास्ततस्त्रयः // 7 // तेषां कृते करीमीति हावईश्लोकमन्त्रको // मार्कण्डेयस्ततस्ती समाधिः श्लोकाईमन्त्रको॥८॥ कृत्वा तु ताविति श्लोको राजोतिर्भगवविति // दुखायेति च मन्त्रौ हावईश्लोकात्मको मतौ // 8 // ममत्वाद्या मूढ़तान्ताचत्वारोऽथ ऋषेर्वचः // ज्ञानमस्तीत्युपक्रम्यमुक्तयेतास्ततो दश // 10 // सा विद्येति च संसारेत्यप्यईश्लोकको मनू // राजोक्तिभगवन् केति श्लोको यत्तदिति दयम् // 11 // अईश्लोकात्मकमृषिनित्यैवेति तथापि तत्॥ हावई श्लोकमन्त्रीस्तो देवानां कार्यमादितः // 12 // तेजसः प्रभुरित्यन्ताः श्लोका: षट् ब्रह्मणोऽथ वाक् // त्वं स्वाहा त्वं स्वधेत्याद्याः श्लोकमन्त्रास्त्रयोदश // 13 // प्रबोधं चेति बोधश्चेत्यईश्लोकामको मनू // ऋषिरवं स्तुतेस्यादिबिम्वन्तं लोकपञ्चकम् // 14 // तावपोत्युक्तावतावित्य ईश्लोकमनुहयम्॥ भगवांच भवेता किमन्ये नेत्यईयुग्मकम् // 15 // ऋषिवाक्य For Private and Personal Use Only