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सोंपण ५२९
स्फुरवं सोपण (सॉ०) स्त्री० सिपुर्दगी; हवाला करना(२) (किसी स्थान पर) स्थिर सोंपवं (सॉ०) सक्रि० सौंपना; सिपुर्द करना; जमाना; रखना; नियुक्त करना
करना; स्थापित करना (३) किसी सोंफ (सॉ०) स्त्री० सौंफ़
विषयको सप्रमाण प्रतिपादित करना, सोंसर, सोंसर(सॉ०) वि० (२)अ०
प्रमाणित करना या निरूपित करना आर-पार। [-नीकळवं, पडवू = इस स्थिति स्त्री० स्थिति; स्थिर रहना; पारसे उस पार तक जाना(२)न पचना.] एक स्थान या अवस्थामें लगातार बने सौ वि० सब; सर्व; कुल (२) अ० रहना; ठहरना (२) निवास; स्थिति भी; समेत; उदा० 'तुं सौ आवजे'
(३)अवस्था; दशा; स्थिति (४)पद, स्टांप (०) पुं० स्टांप; 'स्टेम्प'
ओहदा; स्थिति (५) मर्यादा; स्थिति स्टॉल पुं०; स्त्री० स्टाल; दुकान । स्थितिचुस्त वि० रूढ़िवादी; स्थितिस्त्री स्त्री० औरत; स्त्री (२)पत्नी पालक; 'कनजरवेटिव' स्त्रीकेसर न० स्त्रीकेसर [त्रियाचरित्र स्थितिस्थापक वि० पूर्व अवस्था प्राप्त स्त्रीचरित (-त्र) न० तिरिया चरित्तर; करनेवाला; स्थितिस्थापक; लचीला स्त्रीजन न० औरत; स्त्री
स्नान न स्नान; नहाना (२)मृतस्नान । स्त्रीधर्म पुं० स्त्रियोंका कर्तव्य ; स्त्रीधर्म [-करवं = नहाना (२) [ला.](किसी
(२) रजोदर्शन; स्त्रीधर्म [स्त्रीपात्र संबंधीको) मरा हुआ समझना; सारा स्त्रीपात्र न० कथा, नाटक आदिका संबंध तोड़ देना.] स्त्रीबुद्धि स्त्री० स्त्रीकी बुद्धि; स्त्रीबुद्धि स्नेहलग्न न० प्रीतिविवाह
(२) स्त्रीकी सलाह [[व्या.] स्नेहसंमेलन न० स्नेहियोंका सम्मेलन स्त्रीलिंग न० स्त्रीलिंग; नारीजाति स्नेह-सम्मेलन; 'सोश्यल गेरिंग' स्थान न० स्थान; जगह; स्थल (२) स्नेहाळ वि० प्रेमपूर्ण; स्नेहल रहनेकी जगह; घर; स्थान (३)
स्पर्षवं अ०क्रि० स्पर्धा करना पद; ओहदास्थान
स्पर्धास्पर्षी स्त्री० होड़; प्रतिस्पर्धा स्थानक न० स्थान; स्थानक ; रहनेकी स्पर्श पुं० छूना; स्पर्श (२) संसर्ग; जगह (२) बैठक; आसन (३) पद; संपर्क; स्पर्श (३) छूनेसे होनेवाला स्थानक; ओहदा
ज्ञान; स्पर्शज्ञान; स्पर्श (४)[ला.थोड़ा स्थानकवासी वि० (२)पुं० जैनोंका एक अंश; लव; गंध; अल्पमात्रा; लेश संप्रदाय (३)स्थानकवासीका या उससे (५) (संसर्ग, स्पर्श या संगका)असर संबंधित
स्पर्शवं सक्रि० छूना; स्पर्श करना स्थानिक स्वराज (-ज्य) न० स्थानिक स्फुरण न०,(-णा)स्त्री० स्फुरण (२) स्वशासन; 'लोकल सेल्फ गवर्नमेंट' - स्फूति; तेजी; फुरती स्थापवं सक्रि० स्थापित करना, स्फुर, अक्रि० स्फुरित होना; कांपना, कायम करना (संस्था आदि); स्थित (अंग) फड़कना; स्फुरना [प.] (२) करना; प्रतिष्ठित करना; निर्माण मनमें एकाएक आना; प्रकाशित होना; गु. हिं-३४
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