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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाताधर्मकथा स्वामिनः समवसरणं यावत् परिषत् पर्युपास्ते, तस्मिन् काले तस्मिन् समये कृष्णादेवीईशाने कल्पे कृष्णावतंसके विमाने सभायां सुधर्मायां, कृष्ण सिंहासने, शेष इस तरह से हैं-(तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ) उस काल एवं उस समयमें राजगृह नगरमें भगवान् महावीर का शुभागमन हुआ था। परिषद् उन को वंदना आदि करने के लिये उनके समीप पहुँची। प्रभुने सबके लिये धर्म का उपदेश सुनाया । लोगोंने उपदेश सुनकर प्रभु की पर्युपासना की (तेणं कालेणं तेणं समएणं कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए कण्हंसि सीहासणंसि सेसं जहा कालिए एवं अविट्ठाअज्झयणा कालीगमएणं णेयव्या, णवरं पुन्वभवे वाणारसीए नयरीए दो जणीओ रायगिहे नयरे दो जणीओ, सावस्थीए नयरीए दो जणीओ, को संघीए नयरीए दो जणीओ रामे पिया धम्मा माया सव्वोऽवि पासस्स अरहओ अंतिए पन्वइयाओ पुप्पाचुलाए अजाए सिस्सिणीयत्ताए ईसाणस्स अग्गमहिसीओठिई, णवपालिओवमाई, महाविदेहे वासे सिज्झि हिंति, बुझिहिति, मुच्चिहिति, सम्वदुक्खाणं, अंतंकाहिंति, एवं खलु जंबू! णिक्खेवओ दसमवग्गस्स) उसी काल और उसी समय वहां कृष्णादेवी जो ईशान कल्प में कृष्णावतंसक विमान में रहती थीं-और सा प्रभार छ. (तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं, जाव परिसा पज्जुवासइ) ते णे भने त समये २०४७ नगरमा मापान महावीरनु શભાગમન થયું. તેમને વંદન કરવા માટે પરિષદ તેમની પાસે પહોંચી. સૌને પ્રભએ ધર્મોપદેશ સંભળાવ્યો. ધર્મોપદેશ સાંભળીને પરિષદે પ્રભુની પર્યપાસના કરી. ( तेणं कालेणं तेणं समएम् कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हेव.सए विमाणे सभाए मुहम्माए कण्हंसि सीहासणंसि सेसं जहा कालीए एवं अविद्वा अज्झयणा कालीगमएणं णेयवा, णवरं पु-वभवे वाणारसीए नयरीए दो जणीओ रायगिहे नयरे दो जणीओ, सावत्थीए नयरीए दो जणीभी, कोसंबीए नयरीए दो जणीओ रामे पिया धम्मा माया सम्बओऽवि पासस्स अरहओ अंतिए पन्नइयाओ पुष्फ चूलाए अज्जाए सिस्मिणीयत्ताए ईसाणस्स अग्गमहिसीओ ठिई, णवपलि ओवमाई, महाविदेहे वासे सिज्झिर्हिति बुझिहिति, मुच्चिर्हिति, सयदुक्खाणं, अंतं काहिति एवं खलु जंबू ! णिक्खेवओ दसमवग्गस्स ) તે કાળે અને તે સમયે ત્યાં કૃષ્ણ દેવી-કે જે ઈશાન-ક૯૫માં કૃષ્ણ. વતંસક વિમાનમાં રહેતી હતી અને જેની સભાનું નામ સુધમાં તેમજ સિંહાસનનું નામ કૃષ્ણ હતું–આવી એના પછીને પાઠ કાલી દેવીના For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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