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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - वाताधर्मकथासूत्रे पच्चुण्णमइ पच्चुण्णमित्ता कडयतुडियर्थभियाओ भुयाओं साहरइ साहरित्ता करयल जाव कडु एवं वयासी-णमोऽत्थुणं अरहंताणं जाव संपत्ताणं नमोऽत्थुणं समणस्त भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स वदामि भगवंतं तत्थगयं इह गया पासउ मं भगवं तत्थ गए इह गयत्तिकटु वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा निसपणा, तएणं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे जाव समुप्पजित्था -सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता जाव पज्जुवासित्तएत्तिकटु एवं संपेहेइं संपेहित्ता आभिओगिए देवे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे एवं जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ जाव दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं जाणविमाणं करेह करित्ता जाव पच्चपिणह, तेवि तहेव करेत्ता जाव पच्चप्पिणंति, णवरं जोयण. सहस्सविस्थिणं जाणविमाणं सेसं तहेव, तहेव णामगोयं साहेइ तहेव नट्टविहिं उवदंसेइ जाव पडिगया ॥ सू० २ ॥ . टीको—' जइणं भंते' इत्यादि । जम्बूस्वामीपृच्छति-यदि खलु 'भंते' भदन्त ! हे भगवन् ! श्रमणेन यावत्संपाप्तेन धर्मकथानां दशवर्गाः प्रज्ञप्ताः, -जइणं भंते ! इत्यादि। टीकार्थः-(जहणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तणं धम्मकहाणं दसबग्गा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते ! वग्गस समणेणं जोव संपत्तणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स) जंबूग्वामी श्री जइणं भंते ! इत्यादि( जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दसवग्गा पण्णत्ता पढमस्स णं मंते ! वग्गस समणेणं जाव संपत्तेणं के अहे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबु ! समगेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स० ) For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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