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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org GB ज्ञाताधर्मकथासूत्रे अच्च णिज्जे बंदणिज्जे पूय णिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिजे कलाणं मंगलं देवयं घेइयं पज्जुवासणिज्जेत्तिकट्टु परलोप वि य णं णो आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य ताडणाणि य जाव चाउरंतं संसारकंतारं जाव वीइवइस्सइ जहावसे पोंडरीए अणगारे । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरणं जाव सिद्धिगइणामधेनं ठाणं संपत्तेणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयमट्टे पन्नत्ते । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण जात्र सिद्धिगइणामधेनं ठाणं संपत्तेणं छट्टस्स अंगरस पढमस्स सुयवखंधस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्तिबेमि ॥ सू० ७ ॥ टीका - ' तरणं से' इत्यादि । ततः खलु स पुण्डरीकोऽनगारो यत्रैव स्थविरा भगवन्तस्तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य स्थविरान् भगवतो वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्त्विा स्थविराणामन्तिके ' दोच्चंपि द्वितीयमपिवारम् चातुर्यामं= चतुर्महावतरूपं धर्मं प्रतिपद्यते । तथा पष्ठक्षपणपारणायां संप्राप्तायां प्रथमायां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " तएण से पोंडरीए अणगारे' इत्यादि । टीकार्थ :- ( एणं) इसके बाद ( से पोंडरीए अणगारे) वे पुंडरीक अनगार ( जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ ) जहां स्थविर भगवंत विराजमान थे वहां आ गये । ( उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदह, नमसह, वंदित्ता, नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चपि चाउज्जामं धम्मं (तएण से पोंडरीए अणगारे ) इत्यादि । टीअर्थ - (तएणं) त्यारगाह ( से पेंडरोए अणगारे ) ते पुंडरी अन गार ( जेणेव थेरा भगवतो तेणेव उवागच्छा ) ल्यां स्थविर लगव ंत मिराજમાન હતા ત્યાં ગયા. ( उवागच्छित्ता थेरे भगव से बंदर, नमसइ, वंदिता, नमसित्ता थेराणं अंतिए दोपि वा उपजामं, धम्म परिवज्जइ, छटुक्स्वमणपारणगंसि परमाए For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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