________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
વ
श्रीताधर्म कथासूत्रे
उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूहिं खेज्जणाहिं जाव एयमट्टं णिवेदेति । तएण से घण्णे सत्थवाहे बहूणं दारगाणं ६ अम्मा पिऊणं अंतिए एयमट्टं सोच्चा आसुरुत्ते विलायं दास वेडं उच्चावयाहि आउसणाहिं आउसइ, उद्धंसइ, णिग्भच्छेइ निच्छोडेइ, तजेइ उच्चावयाहि तालणाहिं तालेइ, साओ गिहाओ णिच्छुभइ । तएण से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे रायगिहे णयरे सिंघाडग जात्र पहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाघरेसु य पाणघरेसु य सुहं सुहेणं परिवड्डूइ ॥ सू० २॥
टीका- ' तरणं से' इत्यादि । ततः खलु धन्यः सार्थवाहः चिलातं दासचेटम् ' एयम' एतमर्थम् एतस्मादर्थात् दारकादीनां कपर्दकापहरणादिरूपादभूयोभूय निवारयति । नो चैव खलु दासचेट एतस्माद्दुष्कृत्यादुपरमते । ततः खलु स चिलातो दासचेटः तेषां बहूनां ' दारगाण य ' दारकाणां चन्दार
तरण से धणे सत्यवाहे इत्यादि ।
टीकार्थ - (तरण से घण्णे सत्थवाहे) इसके बाद उस धन्य सार्थवाहने (चिलाय दासचेडं) चिलात दास पुत्र को (एयमहं भुज्जो २ णिवारेह ) बालकों के कपर्दक आदि चुराने रूप अर्थ से बार २ मना किया, परन्तु ( णो चेव णं चिलाए दासचेडे उवरमइ ) वह चिलात दारक उस काम से विरक्त नहीं हुआ । (तएण से दासचेडे तेसिं बहूणं दारगाण य ६
तरण से घण्णे सत्थवाहे इत्यादि --
टीडार्थ - (तएण से घण्णे सत्थव हे) त्यारमा ते धन्य सार्थवाडे (चिलाय दाख बैड ) शिसात हासपुत्रने (एयम भुज्जो २ णिवारेइ) आजओनी अडीयो वगेरेने थोरी ४वा महल वारंवार भनाई उरी, परंतु ( णो खेत्र णं चिलाए दास पैडे उवरमई) ते (यसात द्वार पोतानी भराम वर्तालु छोडीने सुधर्यो नहि. (तएण से चिलाए दासचेडे तेसि बहूणं दारगाण य ६ अप्पेगइयाण'
For Private and Personal Use Only